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[ ४५ ] वावल कांठल वीजळी, बुग पंकज उर चाढ । वादल काला वरसतां, आयो धुर आसाढ ॥६६॥ ६० के बाद झड लागौ धौरा झरण, मोरां लोर मिलाव । वैरल सरपाटां वहै, भालण ज्यु भांड्याव ॥६८॥ ६१ के बाद उर-वसीया में ऐकली, वसीया कदे न वाग । इण पुल जसीयाइ षनै, रसीया सांभल राग ।।७३।। ६५ के बाद म्यारौ आर्ष मालकी, रहै नहीं ऐक रीत । काछो (चो) रंग कसूभरौ, पंछो(चौ)लणरी प्रीत ॥७८।। ६६ के बाद चत्रमासौ वलवल सषर, अथ जल थल-थल आज । जिण पुल जसीयल तीजन, मांणो अलवल(र) माज ॥११७॥ १०६ के बाद मनछल छलरूपी मकर, वल-वल उठी वैल । अलवल (र) रहणौ आदरो, छोडो हल-वल छैल ॥११८॥ बीज-छटा धुर वादलां, आव घटा छ(च) हुँ और । वाव मटा दीठा वण, मीठा महकत मोर ।।१२३।। १११ के बाद लोरां जल लायो लहर, पायो थल चहुं पास। मोरां मल गायौ महक, चायो इल चत्रमास ॥१२५॥ ११२ के बाद उमड घटा उद्रीयांमणी, वीज छटा छव वाह । विस जसडी लागै बुरो, निस पावस विण नाह ॥१२७।। ११३ के बाद वरछां झूबै वेलीयां, खूबै कांठल लोर। कर-कर सौर कलाव कर, मांण रत धर मौर ।।१३०॥ ११५ के बाद कांठल आभै काजली, वल-वल षवसी बीज । म्यारा अलवल माजली, तिण पुल रमसा तीज ॥१३२।। ११६ के बाद मगज अमर मूंछां मयंद, भमर डमर भणणेत । अरज गंमर मानौ अना, नवल वना नषतत ।।१३५।। ११८ के बाद मालू आयु म्यारनै, जालू छालां झल । की हालूं-हालूं करौ, पालुं छू पल-पल ।।१५०॥ १३२ के बाद कहीया था प्रांगु कवल, रहण अठ राजांन । कर हठ क्यूं बांधौ कमर, नवल वना नादांन ।।१५२॥ , ,
क्यूं हठ जाली कवरजी, वाली धण वीसार । जसां-वायक --
क्यूं काळी अतरी कर, माली यूं मनूंहार ॥१५३॥ , ,
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