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बात रीसालूरी दूहा- समुद्र घोडै चालीयौ, पाणीपंथौ जाय बै।
नीरै प्राय न उतरयौ, नगर नणे निरषाय बै । ५९ हिवे कुवरजी हालोया, प्राया नदीया मझार बै।
प्रागै अचंभम देषीयौ, चमक्यौ चित मझार(ब) ॥ ६० १५. वारता—इतरे कुवरजी नदीमै पाया। आगै देषो तो घणा रूंड-मूड मिनषारा माथा पडा देषीया । तठे कवरजीन रूड-मूड माथा हसीया। त? कुवरजी वोलीया-रे रूड-मूड ! हसीया, जिणरौ कारण वतावो । त? माथा कहैदूहा- कुण तु इहा पायो अठै, किरण ठांमें किरण ठोर बै।
कीहांथी आयो कीहां जावसी, साह अछ किन चोर बै॥ ६१ इरण देसै तु प्रावोयौ, मारणसषारणौ देस बै । प्रो सोर ताहरो तूटसी, तुम हमरा कन पडसी आय बै ।। ६२ इण कारण हसोया अमे, अब तुताहारो बोल थे। मे साचा तुझनै कही, चोकस थांरी पोल बे।। ६३]
[-] १४ वीं, १५ वी वारता तथा ५६ से ६३ तक के दूहों का पाठ ख. ग. घ. प्रतियों में निम्नाङ्कित है-- :
ख. वारता- रसालु सलाम कर नीचो उतरचो । इतरे प्रभात हूओ। घोडे चढ प्राधो चाल्यो । चालता चालता कीतरेके दीने समुद्र प्रायो। नावमे बेसने समुद्र पार उतरया। प्रागे अगजीतरो देस प्रायो। प्रागे चालता राजा अगजीतरो सहीर प्रायो। तीण सहीर कनारे रसालु गया। दरवाजा कने मनषांरा माथा पड्या छ। तीके माथा रसालुने देष ने हसवा लागा । रसालु पूछयौ-थे क्यु हसो छो ? माथा कहे- इतरा माथांमे थारो मांथो प्रावे पडसी।
मस्तकवाक्यं क्यु चाल्यो रे मानवी, माणसषाणा देस बे।
प्रो सीर थारो तुटसी, पाय पडसी हम पास बे ॥ १२ ___ ग. अथ वारता- अतरायकमै रीसालु असवार होवेने चाल्या। चाल्या चाल्या समुद्र पार हवा । तदी अंगजीत राजारो सैहर आयो । प्रागे दे तो मनषारा माथा पड्या छ । जके माथा रीसालुनै देष नै हसवा लागा । तदी रीसालु कह्यो-थे क्यु हंसौ छौ ? तद मुंडीक्या कह्यौ-मांका अतरांका माथा पड्या छ, तणीमै थारो पोण माथो पडसी । तदी मुडका फेरे रीसालुनै काई कहै
मुडीवाक्यं दुहा- कांहां चालो रे राजवी, माणसषाणो. गांम बे।
सीर थारो पीण तुटसी, तु प्रासी माहरी ठाम बे ॥८
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