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बात रीसालूरी
[७३ १६. [वारता-ईसा समाचार कुवरजी सूणनै माथायूँ कहै छै-हु तो अगरजी राजारी बेटी परणवा पायौ छ, राजा समस्तरो बेटौ छ। अठै माथा वढ छ, तिणरो कारण काई छ ? त? माथा कहै छै-अरे रीसालू कवर ! राजारा पोलरा मूढ प्रागै नोबत द(ड)को देवै छै, सो हार-जीत कर छै। हार, तिणरौ माथो वाढनै अठ नाष छ । सो इतरा माथा इण रीत भेला हुवा छै। सूं इतरा माहलो काई जीतो नही । सो तु पीण जीतौ कोई नई ।]
त? कुवरजी माथांन कहै - दूहा- म्है राजा राजवी, म्है रावां उमराव' बै।
के तो सीर द्यां प्रापरणौ, क राजारो ल्याय बै॥ ६४ म्हे मारचा किरण रांमरा, ईरण रोते ईण ठोर बै।
जीतने परण्या सूदरी, राजासूं कर जोर बै ॥ ६५ १७. वारता-इसा समाचार माथान कह न चाल्या सहर तुरत । सेहरमै जाय नै किल्लैरै दरवाजे जाय ने उभा रहिया। नोबतरो डंको दीयो। एक दोय डंको देत प्रमाण राजा माहै सूण्यौ। मनमै जांणीयो-कोई क तो आजै राजा फेर आयौ छै । मनमै राजी हूवौ अबार जीत लेसू । इतर रीसालूरौ डंको सूणत प्रमाण राजा अगरजीतजी जाणीयौ कोई क तो रमवावालौ आयौ। त राजा बार नीकल नै नोबतषांन अायौ। कवरजी मुझरौ कीयौ; माहोमांह भीलीया । राजा अगरजीतं पूछीयौ-कठासू प्राया, कोणरा बेटा नै थे क्यूं
आयाछौ ? तठे रीसालू बोलीयौ-माहाराज ! सेरसू आयो छ । राजा समस्तजीरौ बेटो छ । मांहरौ नाम रीसालू छ। थासू चोपड जीतवा आयां छां । ईसो कहीयो ।
घः तदी रसालु असवार हूई चाल्या । रसालु समुझा पंसार हुवा। तदी प्रागै अपजीत राजारो सैहर प्रायो । तदी अगजीत राजारा संहर पाषती मनुषना माथा पड्या छै। तहां रसालुन देषी ने हस्या । तदी रीसालु कहियो-थे कुं हस्या? अतरा मांका माथा पड्या छ, पणथमांको परणाथी अठ पडसो । फेर मुंडचाक्यां काई कहै.---
दुहा- काहां चाल्या वे राजवी, माणसषाणो गांम बे।
सीर थारो पीण तुटसी, तुं प्रावसी ईण टांम बे। [-] कोष्ठान्तर्गत पाठ ख. ग. घ. प्रतियों में अप्राप्त है।
१. ख. रसालु वाक्यं । ग. तदी रीसालुं मुंडीक्यान काई कहै। घ. तदो रोसालुंकाई कहै। २. ख. में। ग. मेह । ३. ख. में नहीं है। ग. मेह। ४. ख. उपरला राव ।
ग. घ. उपरलो राव। ५. यह दूहा ख. ग. घ. प्रतियों में प्रप्राप्त है । ६. १७वीं वार्ताका गद्यांश ख. ग. घ. में इस प्रकार है
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