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परिशिष्ट ३
प्यारा पलकां ऊपर, राषालां चित रीत।
रातै घणी छ राजधी, प्रीतम अधिकी प्रीत ॥ -२५.२१६ प्यारी पोष प्रजंक पर, ऊलही उर अवलूब । मांनु चंदन वृच्छ मिल, झुकी 'क नागणि झूब ।। -२५-२१४
त लगी प्यारी हुती, बाला थई बिछेह ।। नोज किणही नै लागज्यो, कांमण हंदो नेह ।। -१५२-२१ प्रेम गहिली हुं थइ, माहरा पीउरे संग। यूं नहीं जाग्यो हठमला, तो करती रंगमें भंग ।।-१०८-१६५ प्रेम विडाणा पारषा, जगके मोह अकथ । कर जोडि पितु पागलं, रहै सवाई साथ ।। --१३१-३०१ प्रोहित होरा पेषोयो, तीष नोष छिव तोर । बूषी तिषातुर देषिया, मान घणहर मोर ।।--३५-२६०
फिट-फिट कुबधी सज्जना, कोनो नहीं मूझ साथ । षबर न का मूझनै पड़ी, तो मीलती भर बाथ ।। --१०८-१६३ फीक मन फेरा लीया, अंतर भई उदास । प्रांष मीच रोगी अधस, पीवत नीम प्रकास ॥ --५-३२ फेर पयाला पावसां, देर गलारी प्राण ॥ --१७९-१००
बाटो तोने जीभड़ी, कुटल बचन कहाय । .. रोस निवारो राजधी, मो पर करो मयाह ।। --४७.३६१ बालापणरी प्रीतड़ी, पूरण कीधी पीर। . लागा हाथ छयलका, हिव तोसू हुंवो सीर ।। --१०८-१६० बाला बिल-बिलताह, ऊतर को पायो नहीं। कदे काम पडीयांह, निहुरा करस्यौ नागजी ॥ -१६० टि. बांदी बोजी हुइ रूप देषे हाक-बाक ॥ --१७०-४ बाहि ग्रहां की लाज । -१८५-१४१ बोल वरी बारमा, पपीया पोऊ-पीऊ। -१७८.६०
भला तुम्हे सुषीया हुवो, म्हे दुषीयारो देह । साहिब करसी सौ भला, पंषी पंषी सालेह ॥--६५-१३६ सला पधारघा कुमरजी, भलो हुवो दिन माज । प्रास्यां-बंधी कामनी, ताका सुघरचा काज || -१३२-३०६ भली बूरी माइत तनी, नषि कीजै देषे पूत्र । पठत मावीतथी, ते सफू जाणे सूत्र ।। -१३१-२६६ भावज भणु बुहार, सपणा संदेसग।
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