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[ ४७ ] ॥ दूहौ ॥ देषण मुरधर देसनू, है जावणरी हाम ।
कर जोडे अरजी करां, मांनी नी म्यारांम ।।१७४।। वादल गल जल वीषरै, एल सीतल अधकार । केकांणां हलवल करै, इण पुल क्यूं असवार ।।१७५।। रिल चित मलीया राजसु, विलकुलीया एक वार ।
चलीया जसीयल चौ (छौ)डन, अलवलीया असवार ।।१७६।। वात-मालू कहै-मांकी अरज क्यूं न मांनी छौ ?
इल सोतल अवदात वायव-जव-सम वलावल , डार मांण डरपती नार भीडै पीउ कावल । भुअंग भूम माय भलत भमर दाहंत वेजोगण , रूठ सगत न्ह रहत तोमडंळुम तमोगण । दाजसी वनां सीतल दहण, रहण अठ चत रीझीयै ।
रत पलंग छाक मांणो रमण, इण रत गमण न कीजोयै ।।१७७।। वारता-जद म्यारांम कह्यो-मांको तो मन उठे लाग रह्यो। प्रबारु तो जावाला, फेर यूं कहै तो प्रावांला । बेलीयांनूं कह्यो कमरां बांधी, सारा साज पुरणां पर सांधौ। घोडां पर साकतां मंडाणी छ, जद जसां चढणकी जाणी छ। मालुनं कह्यो-कवरजी राषीया नही रहै, अब यूं काटूं कहैं । जद मालू कह्यौ-पांक म्यारांमजी वना नही सजसी, आपां घणी करसां तौ प्रांपांन तजसी । जद जसां भी सारी त्यारी कीधी, लषां ग्रहणा-पौसाषां साथे लीधी। जांनी सिरदार दोढी पाया, कलावंत गाया। जद म्यारांम जसांनू कह्यौ-मै डेरां जावसां, सारा साज तारी करावसां। वींद-राजा घणा दनां सूं बार पाया, जानी घणा आणंद चाया। मुजरा-सलाम कोधी, हाजरी लीधी; जण दनरौ दुलहौ ऐसो नजर आयौ, नकी लीधी। अलवर की सहेलीयां देषणनु आइ छै, पापक तो मारवाड की छढाइ छ । वछायतां कीजै, की छका दीजै। आप ही पीज, जसीयांको सुहाग पर कीजै। वछायतां कराइ, दारूकी तुंगां भराइ, जसांक दोली कनात षडी कराइ । वींदराजा वराजीया, चंद-सूरज-सा छाजीया। दारूका प्याला भराया, घोडा काय कराया। पणीयारीयांका टौला आवै छ, रूप देष मस्त होय जावै छ। दुहा ।। कंचन-पंभ कलाइयां, मणधर जेही डं[ड] ।
गज-गत चंगी गोरडी, लांबा वैणी - डंड ।।१७।।
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