SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बात नागजी-नागवन्तीरी [ १५३ सोरठा- नागजी तणे सरीर, क्या जाणवेदन किसी। ____ इसो न कोई वीर, जिणनै पूछ नागजी ॥ २५ तरै वैद दूहा कह्या, सुणने कहै छै दूहा- कुच कर पोखद भुजपटी, अहैरपती दे ताव । उन नयनके घावकू, अोखद एह लगाव ॥ २६ १५. वारता- वैद बोलीयो-हे नागवंती ! अाज ढोलीयो हूं एकांयंत अलायदो घलाय आयो छु, सुं थे नागजी कनै जाज्यो; [थांहरो मनोरथ सरसी] । तद नागवंतीरै गलै मांहे सवा कोड़रो हार थौ, सु काढनै उपरांसुं नांखीयो । सु वैदरा खोला मांहे पाय पड़ीयो । सु वैद तो चढनै वहीर हूवो। हमै होळीयांरा दिन था। सु गढमैं गेहर वाजै छै, 'गेहरीया रमै छै'। सू उठासुं नागजी हाथमै सेल लेने ओ ताक अाय ऊभा छै । तिसै नागवन्ती आपरी मांने कह्यौ-थे कहो तो गढमैं गेहर वाजै छ, सु जायन देख आऊ । तरै माता कह्यो-जावो। तरै नागवन्ती सातवीसी सहेल्यांसं गढ़में आई। प्रागै धोलबाळो नै जाखड़ो दरबार मांडीयां बैठा छ। बड़ा बड़ा उमराव मुसदी बैठा छै; मोटीयार डांडीयां रमै छै ; गेहर अवल वाजै छै । सु नागवन्ती तो नागजी रै वासतै पाई, सु सारी गेहरमैं फिरी । पिण नागजीनै दीठा नहीं। तरै दुहो कहै छै दुहा- ढोल दड़ के तन दहै, गेहरीया नांचंत । चालो सखी सहेलड़ा, कठे न दीसै कंत ॥ २७ १६. वार्ता- तरै एक वडारण जांणीयो—ा' नागजीरै वास्ते आई छ । ईसो जाणनै वडारण फिरती फिरती नागजीने देख आई नै नागवंतीनै हो कहै छैदुहा- सेल भळ का२ कर रह्यो, माठू (द)ड़ा घूमंत । आवो सखी सहेलड़ा, आज मिलांऊ कंत ॥ २८ १७. वारता- तरै वडारणरै माथैमै नागवन्ती देने 3 छानैसै पचास रुपीया दीया, तिवारे वडारण कह्यौ-एक वले ही देवो पिण हालो। तरै नागवन्ती १. ख. प्रोषध । २. ख. इलायधो। ३. [-] ख. प्रतिमें नहीं है। ४. -' ख. प्रतिमें नहीं है। ५. ख. कीयां । ६. ख. मुतसदी । ७. ख. गर । ८. ख. रम रह्या छ। ६. ख. घडूकै । १०. ख. सहेलड़ी। ११. ख. प्रति में नहीं । १२. ख. भलूक्का । १३. ख. दीनी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy