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________________ बात रीसालूरी [ ७५ [त, कुवरजी बोलीया-हिवै माहाराज माथो दीरावो । त, राजाजी बोलीया- म्हारो माथो परो देसू थान; पिण आप राजी हूँ वो तो राजलोकसू मीलीयात् । तकुवरजी बोलीया--दुरस छ, भलाई मीली प्रावौ । ईतरौ संणनै राजाजी मांहै गया। रांणीयासू मीलीया । सारी हकीकत कही । त? रांणी दलगीर हुई । तरै राजाजो दुहौ कहै छै]दुहा- उची मीदर मालीया, अवल सेझडली रूप बै। रिद्ध भंडार ए देसडो, तो सरसी रांणी नप बै॥' ६६ सारा विडारणा हिव हवा, जासी हमारा सीस बै ॥ सोस घरणारा डूंचीया, अब पाया मूझ चोर बै ।।२ ६७ रांणीवायक्यं किरणस्यूं राजा थे रम्या, किरणथी बाजी अनूप बैः । मैं थांनू राजा' वरजीया, मति पेलौ वाजी' भूप बै ॥ ६८ राजावायक११ होणहार सौ१२ नही मिटै' 3, लैष लिष्या छैठो१४ रात बै। भलो बरो१५ सहमांहरौ१६, करसी विधाता मात बै ॥१७६६ ग. घ. ष्याल मांड्यो (घ. दरोषांना उपर चौपड मांडी, व्याल मांड्यौ)। पहलि तो (घ. तदी पहला तो) घोडो हारयो । पछै मोहरांरा भरया दोय तोबरा हारया (घ. पर्छ तोबरा दोय मोहरांका हारचौ) तीजी (घ. पछै तोजी) बाजी मांडी। राजारा तो पासा छपाडे मेल्या (घ. छोणडे राज्या)। गोरषनाथजीरा दीधा (घ. गोरषनाथजीरा) पासा काढ्या । तदी कह्यौ-अब कांई लगावस्यां (घ. पछै ख्याल मांड्यौ। राजाजीरो माथी लगायो । रसालु कयौ हुं पीण माथो लगावसु)। तीजी बाजी रीसालुं जीता (घ. तदी रसालु वाजी जीत्या।) [----] कोष्ठवर्ती अंश ख. ग. घ. में निम्न रूप में वर्णित है.--- ख. तद राजा अगजीतने रसालु कहे--थारो माथो दीयो । राजा कहे--माथो त्यार छ, पीण थे एक बार मनु राजलोकमे जांणद्यो । रसालु कहे--भलाई पीधारो। जद अगजीत राजालोकमे जाय रांणीने कांइ कहे छ । राजा वाक्यं-- ग. घ तद राजाने कह्यौ-माथो ल्यावो (घ. ल्याव) । तदी (घ. तदी राजा) कह्योऐक वार (घ. मोनै एक वार) राजलोकांमै जावण द्यौ (घ. जावा द्यौ)। तदी रीसालुं कहो-भला (ध. में नहीं है) । तदी राजा अागजीत कह्यौ-हुं छु, राजा चाल्यो (घ. तदी राजलोकमै जाय कहै । अंगजीतवाक्यं १. २. ख. ग. घ. प्रतियोंमें उक्त दोनों दूहों के स्थान में निम्न एक ही दूहा उपलब्ध है ख. उंचा महिल'८ प्रावास हे, गया हमारा छूट १६ ब। सोर हमारा जीतीया, प्राया परपंडी२० चोर बे।।। ३. ख. रांगी वाक्यं । ग, घ. रांणी (घ. तदी राणी) कांई कहै । ४. ख. ग. घ. कोण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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