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________________ बात रसालरी [५५ Aरीझ कर नै राजाजी एकला उभराण पगा भाषर चलीया । चलताचलतां भाषर उपर चढ नै श्रीगोरखनाथजीरो दरसण कीधो। गोरषनाथ पल षोल नई। तरे राजा एक पगरै पान मंहडा प्रागै उभौ रह्यौ; दोय हाथ जोडि रहौ छ, श्री गोरषनाथजीरौ ध्यान करै छै। ईण तरै सवा पोहर तांई राजा उभौ रह्यो । त?' श्रीगोरषनाथजी पल षोली । आगै3 Bदेषे तो राजा एक पगरे पांण उभो दीठौ । त? श्रीगोरषनाथजी तुष्टमांन हुय नै बोलीयाB.-राजा ! मांग तन तूठो, चाहीजै सो मागलैBI Cइसौ राजा सुण नै सिलांम कर नै बोलीयौc-माहाराज ! आपरैः परसादकरनै' सारी वातरी दोलत छै, Dपिण ईक पूत्र कोई नही । तिणरौ मांने घणो दूष छ सो आप तूठा छौ तो पूत्र दिरावौD। [ईसो गोरषनाथजी सूणनै आपरा हाथम गुलाबरी छड़ी थी, सौ राजानी दीधी नै कहीयो-जै पाबारौ रूष छ, तिणरे एक वार छडीरी दीजै; सौ अबारी करी येक पडसी, तिका ताहारी रांणीनै षवायजै, तिणसूं ताहरै पूत्र होसी, तिण पूत्ररो नाम रीसाल दीजै; ईसौ कह्यौ। त? राजा छडी लै नै चालीयौ] A-A. चिन्हान्तर्गत पाठ ख. ग. घ. में निम्न रूप में वर्णित है___ ख. पछे राजा समसत एकलो अलवाणो डुगर उपर चढीयो। आगे देखे तो श्री गोरषनाथजी ध्यानमे बेठा छ । राजा पण उठे एक पगवरांणो सवा पोर ताई उभो रहे ने सेवा करे छ। ग. तदी राजाजी ऐकलाई डुंगरी चढया । गोरषनाथजी नै देष्या । तदी उठाईसु उभा रह्या । एक पगवरांणा सवा पोहर ताई सेवा कोधी। । घ. तदी राजा पालौ एकलौ डुगर उपर चढयौ । गोरषनाथजीने दीठा । तदी परक्रमा दे एकण पगवरांणा सवा पोहर तांई सेवा कीधी। १. ख इतरे। ग. घ. तदो। २. ख. उघाड। ग. उघाडे । घ. उघाडी। ३. ख. कर । ग. घ. नै। ___B-B. ख. देषे तो राजा उभो छ । इतरे श्रीगोरषनाथजी बोल्या-राजा। मांग मांग, हु तोनु तूठो, जे मांगे सो देउं । ग. घ. कह्यौ-राजा मांग मांग, तोने (घ. में नहीं है) तुष्टमान हुवां । C-C. ख. तर राजा हाथ जोड ने कहे। ग. घ. राजा कहै (घ. कह्यौ) ४. ख. ग. घ. आपरी। ५ ख. ग. दीधी। घ. पाथी। ६. घ. में नहीं है। ___D-D. चिन्हगभित पाठ ख. ग. घ. में यह है--ख. राज तुठा तो प्रमाण । माहरे पुत्र नहीं, सो एक पुत्र दोउं । ग. पिण ऐक मांगु छु-सो ऐक पुत्र नही । घ. पण बेटो नहीं। [-1. ख. ग. घ. प्रतियों में ऐसा पाठ मिलता है--ख. तदी जोगीस्वर एक च (छ) डी दोधी । जा, माहरे बागमे प्रांबारो गोठ छे, तीणरी इण छडीसु एक केरी पाडजे; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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