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________________ बात रीसालूरी [ १३६ तठे रीसालूजी बोलीया-म्है थाहरा राजानो कागल बीड देवां छां सौ हाथी-हाथ देज्यौ । थाहरौ राजा वांचनै मानै सीष देसी तौ परा जावस्यां, कजीयौ करसी तौ कजीयौ करस्यां; ओ जाब छ । तठे प्रधान बोलीयौ-दुरस फूरमाई, आप कागल लीष दीरावी । तठे रीसालू कागल लिङ्ग छैदूहा- सीध श्री सकल गुणनिधांण, तपतेज प्रमाण, प्रबल राजपरताप, तपतेज कायम, जगत दुष चूरण, गरीबके सरण, छोरूकै पाल, माहारसाल, परम सूषकारी, राजकृपाथी सूत सूष भारी श्री श्री श्री १०८ श्री १०००००० श्री श्री माहाराजाधीराज माहाराजाजी श्री श्री श्री समस्तजी चरण कुमलायनूं -- दहा- श्री सिध श्री श्रीहजूरन, लिषतं सूत कल्याण । तन मन जीवन सूष करन, पूरण परम निघांन ॥ ३२६ सकल प्रोपमा जोग्य है, पितु-माता मनूं रंग । सूतको मूजरौ मानज्यौ, दिन दिन अधिको रंग ॥ ३३० सूष बहु तुम परसादथी, तन धन श्री माहाराज । सदा रांवलो जांणज्यौ, चाकर साधत काज । ३३१ तुम फूरमायो जा परो, सो काहां जावै भाम । पूत्र तुमारो रीसालूंवो, आयो मीलवा काज बे ॥ ३३२ जो मिलवो मूष देषवी, जो कोई मूहुरत होय । प्रोहितजीने पूछ कर, आछौ दिन ल्यौ जोय ॥ ३३३ पिता हकम वनवासकौ, सौ लह्यौ सीस जढाय । वरस बहुत बारे भम्यौ, अब आयौ तुम पास ॥ ३३४ श्रीमाहाराजा हुकम द्यौ, तो हुआउं राज । चरण तुमारा भेटवं, ज्यूं मूज सूधरे काज ।। ३३५ सल्ला होय सौ कीजीयौ, पूठौ दीज्यौ जाब । जै कहौस्यौ सौ मनिस्यूं, करस्यूं काम सताब ।। ३३६ गुनेहगार हु रावलो, साहिब चरणां दास । छोरू कुछोरू हुवे, पिण तात न छोरत पास ॥ ३३७ तदि प्राप हूम कीधो-मे थांरा राजाजीरा बेटा छयां; वरस बारमं पाया छां, सगले साथ राजाजीर कुसल-म छै ? माहरी भाजीरो डील प्राछो छै ? मे तो वरस घणांसु पाया छो, सो ठीक नहीं । जदी उणी कह्यौ--माहाराज ! घणो सुंष छ, चैन छै, वले प्राप पधारयांथी वसेष चैन छै । जदि कुंवरजी कह्यो-थे जावो, राजाजीसुं मालम करो। उणी कह्यो-प्रमाण । उ घणा उछाहसुं दरबार प्राव्यो, राजाजीसुं कह्यो- माहाराज ! कुवर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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