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________________ १८४ ] बात दरजी मयारामरी सरवर कह रस भर जल सिलता, तरवर षपसर ऊत रलतत्यार । मुरधर कमर कस म्यारा, हर घर मत कर कंत हमार ॥ ४ पग-पग कीछ प्रथग लग पाणी, मग मग डग डग पथग मरै । जगभरा नगां सुरंग अंग जसीयां, धरण लग पग अग करग धरै ॥ ५ चरंजी रहौ रहौ च (छौ) नौजी, वरजी करजी जोडे वाम । भौगी दरजी दिन भांनौजी, मांनौजी अरजी म्यांराम ॥ ६ दुहा- म्यारा ! थारा मुलकमै, चंगी कासू वार वार मुरधर वहौ, राज किसै गुंरंग मालू ! मांरा मुलकमै, चंगी वसतां नर नारी श्री ठान बंग, तोषा वै मालू ! थांरा मुलक, कासू भला नर नागा नारी नलज, रोजे केम म्यारा ! मांरा मुलकरा, वागांरा प्रालीजां सुणजो अबे, श्रवणां कथन सुजाण ॥ १३६ वागांरा वाषाण- छन्द पधरी वाषाण । वन सघन लसत मनु घन वसाल, संचरे नाहि रवि रसमरास । जग ताप हरत प्रतिसुषद छांहि, लष लिलत छटा मुनगन लुभाय ॥ केली कदंब करुना सोक, सहकार बकुल लष मिटत सोक | जातीफल जाबू नालकेर, वट पीपर महि व्हें" हरत हेर || पाडर पुन रायन तरु तमार, तहाँ सरु बकायन सरस तार । चंदन अगर तोया कुन्द चारु, सीताफल चंपक श्ररु अनारु ॥ कचनार नागलितका लवंग, थल कोल मल्लिका मिलत संग । चीज । रोज ।। १३६ च्यार | तोषार ।। १३७ कहौ । रहौं ॥ १३८ वेलराय । केतकी जुही केतक रु जाय, चंबेल माधवी केसर मनौग क्यारी जु कोन, रितराज वसै नित चिब नवीन ॥ प्रफूलत हिम गुलम ज नव प्रकार, थल सकल हरित सुष करत सार । मकरंद मंजुरी स्ववत पुंज, अलिमाला भूमत गुंज-गुंज ॥ उहहत कुसम पूरत पराग, पल्लव दल मिल जेव जाग । रखमुषी दावदी पुन पलास, नाकुरमा परगस पास पास ॥ सोभत मन्द सीतल समीर, कोकला कुहक क्रत सोर कीर । वांनी अनेक कुजत वैहंग, नाचत मयूर आनंद अंग ॥ १. ख. कवर। २. ख. कोच । ३. ख. चो । ४. ख. महि है । ५. ख. लिया। ६. ख. छिब । ७. ख. स्वतत । ८ फल । ६. ख. मंत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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