________________
युगवीर-निबन्धावली 'उपवास करने वालेको उस दिन निद्रा तथा मालस्यको छोड़ कर प्रति अनुरागके साथ कानो द्वारा धर्मामृतको स्वयं पीना तथा दूसरोको पिलाना चाहिये और साथ ही ज्ञान तथा ध्यानके पाराघनमें तत्पर रहना चाहिए।'
इस प्रकार उपवासके लक्षण और स्वरूप-कथनसे यह साफतौर पर प्रकट है कि केवल भूखे मरनेका नाम उपवास नहीं है, किन्तु विषय-कषायका त्याग करके इन्द्रियोको वशमे करने, पच पापो तथा आरम्भको छोडने और शरीरादिकसे ममत्व परिणामको हटाकर प्राय एकान्त स्थानमे धर्मध्यानके साथ कालको व्यतीत करनेका नाम उपवास है और इसीसे उपवास धर्मका एक अग तथा सुखका प्रधान कारण है।
जो लोग ( पुरुष हो या स्त्री) उपवासके दिन भूठ बोलते हैं, चोरी करते हैं,मैथुन सेवन करते हैं या अपने घर-गृहस्थीके धधोमे लगे रहकर अनेक प्रकारके सावद्यकर्म (हिसाके काम) एव छल-कपट करते हैं, मुकदमे लडाते और परस्पर लड़ कर खून बहाते हैं तथा अनेक प्रकारके उत्तमोत्तम वस्त्राभूषण पहनकर शरीरका शृगार करते हैं, सोते हैं, ताश, चौपड तथा गजिफा आदि खेल खेलते हैं, हुक्का पीते या तमाखू आदि सू घते हैं और स्वाध्याय,सामायिक, पूजन,भजन प्रादि कुछ भी धर्म कर्म न करके अनादर तथा प्राकुलताके साथ उस दिनको पूरा करते हैं वे कैसे उपवासके धारक कहे जा सकते हैं और उनको कैसे उपकासका फल प्राप्त हो सकता है ? सा पूछिये तो ऐसे मनुष्योका उपवास उपवास नहीं है किन्तु उपहास है। ऐसे मनुष्य अपनी तथा धर्म दोनोकी हँसी और निन्दा कराते हैं, उन्हे उपवाससे प्राय कुछ भी धर्म-लाम नहीं होता । उपवासके दिन पापाचरण करने तथा सक्लेशरूप परिणाम रखनेसे तीव्र पाप बधकी सभावना अवश्य है।
हमारे लिये यह कितनी लज्जा और शरम की बात है कि ऊंचे