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( १६ ) महाराज के मन की बात जानकर कहा कि महाराज !
आपके अनुपम पुण्योदय से आपका चिंतित बहुत जल्दी सफल होगा । उस समय सावधान होते हुए महाराज ने कहा मालूम होता है मेरे हृदय को तुम जान चुके हो । बताओ यह किसका महल है ? और यह सुमुखी कन्या कौन है ? तब उस चितज्ञ चतुर ने कहा कि महाराज यह
आपके अनन्य भक्त राजा दीपचंद्रदेव की महारानी प्रदीपावती का नवखंडी महल है। उन्हीं की कूख रूप सरोवर में कलहंसी के समान पैदा होनेवाली सर्वाङ्गसुन्दर सूर्यवती नाम की यह उन्हीं की पुत्री है।
राजा दीपचन्द्रदेव, इस समय महाराज को कौन से अद्भुत समर्पणों से प्रसन्न करू ऐसा सोच रहे हैं। इस कन्या के लिये भी वे चिंतित हैं कि कौनसे कुलीन गुणी और श्रीसंपन्न वर के साथ पाणिग्रहण कराकर कर्तव्य पालन करूं । अतः इस काम में कोई देरदार नहीं है। दूध शक्कर के समान यह सुखद संबंध होने ही वाला है आप निश्चित रहें । कलावान की मन के अनुकूल बातों को सुनकर महाराजा बहुत प्रसन्न हुए । राज मार्गों में होते हुए वहां के तीर्थ रूप भगवान श्रीऋषभदेव स्वामी के दिव्य मंदिर के दर्शन किये । भाव भरे स्तोत्रों से भगवान की