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प्रमेयोधिनी टीका सू. ४ प्र. १ रुप्यजीव प्रज्ञाननिरूपणं
परमाणुपोग्गला ४, ते समासओ पंचविहा पन्नत्त । तं जहाaणपरिणया १, गंधपरिणया २, रसपरिणया ३, फासपरिया ४, संठाणपरिणया ५ ॥ सू० ४ ॥
छाया - अथ का सा रूप्यजीवप्रज्ञापना ! रूप्यजीव प्रज्ञापना चतुर्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-स्कन्धाः, १ स्कन्धदेशाः २, स्कन्धप्रदेगा:, ३, परमाणुपुला ४, 'समासतः पञ्चविधा: : प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-वर्णपरिणताः १ गन्धपरिणताः
२, रसपरिणता: ४, संस्थानपरिणताः ५ ||सू० ४ ॥
टीक -- अथ रूप्यजीवप्रज्ञापनां प्ररूपयितुमाह - - ' से किं तं रूवि अजीवनवणा ?' 'से' अथ, 'किं तं' किं तत् का सा 'रूवि अजीवपन्नत्रणा ?' रूप्यजीव अब रूपी - अजीव की प्ररूपणा करते हैं
सूत्रार्थ - (से) अथ (किं तं) वह क्या है ( रूवि अजीव पन्नवणा) रूपी अजीव प्रज्ञापना (रूपी अजीव पण्णवणा) रूपी अजीव प्रज्ञापना (वा) चार प्रकार की (पण्णत्ता) कही है । (तं जहा) वह इस प्रकार है । (खंधा) स्कंध (खंधदेसा) स्कंध देश है । (खंधपएस) स्कंध प्रदेश ( परमाणु पोग्गला) परमाणु पुदूगल (ते) वे (समासओ) संक्षेप से (पंचविहा) पांच प्रकार के ( पण्णत्ता) कहे हैं (वण्ण परिणया) वर्ण रूप में परिणत (गंध परिणया) गंध रूप में परिणत ( रसपरिणया) रस रूप परिणत ( फास परिणया) स्पर्श रूप में परिणत ( संठाण परिणया) आकार रूप में परिणत ॥४॥
टीकार्थ :- अब रूपी अजीव की प्रज्ञापना का क्या स्वरूप है ? श्री भगवान् उत्तर देते हैं- रूपी अजीव की प्रज्ञापना चार प्रकार की है ।
હવે રૂપી અજીવની પ્રરૂપણા કરે છે सूत्रार्थ – (से) मथ (किं त) ते शुं छे (रूवि अजीब पन्नवणा) ३पी अव · अज्ञापना (रूवि अजीव पण्णत्रणा) ३५ी लव प्रज्ञापना ( चउब्विहा) यार प्रार नी (पण्णत्ता) डी (तं जहा ) ते या प्रारे (खंधा) २४६ (खध देसा) -४न्धना देश (खध पएसा) २४४ प्रदेश (परमाणु पोग्गला) परभागुयुगस (ते) तेमा (समासओ) साक्षेपथी ( प च विहा) पाथ अहाना ( पण्णत्ता) ह्या छे (वण्णपरिणया), वर्षा ३ परिणत (गंध परिणया) अध३५ परिशुत (स ठाण परिणया) भार રૂપમાં પરિણત ॥ ૪ ॥
ટીકા ——હવે રૂપી અજીવની પ્રજ્ઞાપનાનું શું સ્વરૂપ છે ? શ્રી ભગવાન ઉત્તર આપે છે.-રૂપી અજીવની પ્રજ્ઞાપના ચાર પ્રકારની છે. તે આ પ્રમાણે છે