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पसंहाणप्पमापाणं तु" पाट स्वीकृत किया है यहां संठा के स्थान पर "सिद्धाणं'' पाठ प्रधिक संगत जान पड़ता विसका अर्थ होता है प्रतीत- भूतकास संख्यात प्रालियों से गुणित सिखों के प्रमाण हैं।
३२ वी गाथा के पूर्वाध "जीवाधु पुग्गलादोणतगुणा चावि संपदा समया" में "चावि" के स्थान पर सही पाठ"मावि" जान पड़ता है जिसका अर्थ होता है प्रावी-भविष्यवकाल जोव और पुदाल से प्रनन्तगुणा है तथा संपदा-वर्तमानकाल एक समय मात्र है । लोकाकाश के प्रदेशों पर जो कालाणु स्थित है यह परमार्थ-निश्चल काल द्रव्य है । "पाधि" पाय के स्वीकृत करने पर मविष्यत्काल का वर्णन हट जाता है।
} ४१ वी गाघा को टीका में बायोपामिक भाव १८ भेदों की गणना में पद्मप्रभमानधारी देव ने पांच उपसब्धियों के नाम कालकरणोपदेशोपशमप्रायोग्यता-भेदाल्लब्धयः पञ्च" पंक्ति द्वारा कालकरण, प्रदेश (देशना) उपशम (क्षयोपशम) और प्रायोग्य. स्वीकृत किये है जबपि. ग्रन्थान्तरों में क्षायोपमिक दान, लाभ, भाग, उपभोग और वीर्य को प्रब्धि माना गया है और करणादि लधियों को सम्पनत्व प्राप्ति में सहायक बनाया गया है।
(३) ५३ वीं गाथा में ''रख यगहुदी" शब्द की संस्कृत छाया 'क्षयप्रभृतेः' स्वीकृत कर जिन सू को बाह्य निमित्त तथा उसके ज्ञाता पुरुष को दर्शन माह का क्षय होने से अन्तरङ्ग हेतु कहा है। जबकि जिनसूत्र मोर उसके ज्ञाता बहिरंग हेतु हैं और दर्शन माई का क्षय ग्रादिक अगरङ्ग हेनु है । "खयपहुदी" की संस्कृत छाया "क्षयप्रभृतिः'' है । उसमें विपर्यास होने में टीका में विपर्यास हो गया है। टीकाकर्नी माताजी ने विशेषार्थ में इन स्थलों पर कुछ प्रकाश डाला है। हिन्दी टोका :
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बहुत पहले नियमसार गर एक हिन्दी टोका स्वर्गीय व पीतलप्रसादजी ने लिखी थी वह कितने ही स्थलों पर स्खलित पी। अभी हाल श्री पण्डित हिम्मतलाल जेठालाल शाह कृत गुजराती टीका के प्राधार पर पण्डित मगनलालजीकृत हिन्दी टीका सोनगढ़ में प्रकाशित होकर स्वाध्याय में अा रही है। जो टीका पाठकों के हाथ में है वह भी १०५ भायिका रत्न ज्ञानमति माताजी के द्वारा निखित है। स्वाध्याय करने वान महानुभाब इस टीका को विशेषता का स्वय अनुभव करेंगे ।
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प्रायिकारत्म ज्ञानमति माताजी :
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प्रार्मिकारत्न ज्ञानमति माताजी का जन्म भासोज शुक्ला १५ वि० संवत् १६६१ सन् १९३४ ईस्वी को टिकतनगर (उ० प्र०) निवासी धर्मस्नेही श्री छोटेलालजी को धर्मपत्नी मोहिनीदेवी के गर्भ से हुआ था । माताजी ही नहीं, इस परिवार में सब पूर्वभव के सरकारी जीव एकत्रित हुए हैं। श्री मोहिनीदेवी इस समय ''रत्नमति"