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इन्होंने स्वरचित टीका में प्रतिपादित विषय का समर्थन करने के लिए विभिन्न प्राचार्यों के श्लोक भी समुदधृत किये हैं। टोका परीक्षण करने से विदित होता है कि उसमें कुन्दकुन्द, समन्तभद्र, पूज्यपाप, योगीन्द्रदेव, विद्यानन्द, गुणभद्र, अमृतमन्द्र, सोमदेवपण्डित वादिराज पोर महासेन मादि पाचायों तथा समयसार, प्रव पंचास्तिकाय, उपाश्चकाध्ययन, अमृतीशीति, मार्गप्रकाश, प्रवचनसारव्याख्या, समयसारख्यास्था, पदमनन्दिपंचविमतिका, तत्वानुशासन तथा श्रुबिन्दु नामवः ग्रन्थों का उल्लेख किया है।
पदमप्रभमलधारी देव ने यधपि अपनी गुरु पम्परा तथा प्रन्य रचना के समय का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया है तथापि नियमसार की स्वरचित तात्पर्यवृत्ति के प्रारम्भ में और पञ्चमाधिकार के अन्त में बोरनन्दि मुनि की वन्दना की है।
भद्रास प्रान्त के अन्तर्गत "पटशियपुरम्" ग्राम में एक स्तम्भ पर पश्विनी चालुक्य राजा त्रिभुवनमल्ल सोमेश्वर देव के समय का शक मवत ११.७ का एक भभिलेख है - जबकि मलिक त्रिभुवन मल्ल, भोगदेव चोल्स हेजरा नगर पर राज्य कर रहे थे । उसी में यह लिखा है कि जब गद गमन गरम गर. ५तब पदा प्रभमला देव और उनके गुरु वीरनन्दि सिद्धान्त-चक्रवर्ती विद्यमान थे।" रा अभिलेख से पद्मप्रभमलघारी देव के गृह का ही नहीं किन्तु समय का भी परिज्ञान होता है। तात्पर्य यह है कि वे १२ ईश्योग शताब्दी के विद्वान थे। *
गदयरधार्ग देव को अब तक दो सपनाये ही उपलब्ध हैं :
(१) नियमसार की तात्पर्य वृत्ति और (२) पाश्वनाथ स्तोत्र ( पपरनाम लक्ष्मीस्तोत्र ) नियमसार की तात्पर्य वृत्ति पाठकों के हाथ में है । पार्श्वनाथ स्तोत्र में यमकालंकार से विभूषित ९ श्लोक हैं । यह माणिकचन्द्र गन्यमाला से प्रकाशिन "सिद्धान्त सारादिसंग्रह" में सटीक प्रकाशित है । यमकालंकार को छटा देखिये
"लक्ष्मोमहस्तुल्य सतो सती सती, प्रमुखकालो बिरसो रतो रतो।
जरा इजा जन्म हत्ता हता हता, पार्श्व फरखे राम गिरे गिरी गिरौ ।। इम जोन का हिन्दी पनुवाद स्वर्गीय जुगलकिशोरजी मुख्त्यार ने हमसे कराया था। तालयं वृत्ति के विचारणीय स्थल -
1) नियममार को गाथा ३१ और ३२ में वालद्रव्य का वर्णन है । उसमे कालद्रव्य के भूत, भावी और बर्तमान के भेद से तीन भेद किये गये हैं। टीकाकार ने ३१ यो गाथा के उत्तराई में "तीदो संखज्जावलि
श्रीडाने मिचन्द्र शास्त्री द्वारा विरचित "तीर्थंकर महावीर और उनकी भाचार्य परम्परा भाग के प्राचार पर"।