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जैन संस्कृत महाकाव्य
वे उसके चरणों की दासता के लिये लालायित रहती हैं (९.११)। कवि के शब्दो में वायु उसका आंगन बुहारती है, गंगा पानी भरती है और स्वयं सूर्य उसका भोजन पकाता है (८.३०) । वह भाग्यशाली नारियों में अग्रगण्य है (११.२८) । अपने विविध गुणों के कारण वह पति के हृदयपंजर की सारिका बन गयी है (११.२३)। .
सुमंगला हीन भावना से ग्रस्त है। स्वप्नफल की अनभिज्ञता उसकी आत्महीनता को रेखांकित करती है। काव्य में उसके द्वारा की गयी नारी-निन्दा उसके अवचेतना में छिपी हीनता को व्यक्त करती है। उसी के शब्दों में नारी और चिन्तन दो विरोधी ध्रुव हैं (७.६२) । सुनन्दा - सुनन्दा काव्य की उपेक्षित सहनायिका है । वह यद्यपि काव्य की सहनायिका हैं किन्तु सुमंगला के प्रति पक्षपात के कारण कवि ने उसके महत्त्व को समाप्त कर दिया है । एक-दो प्रसंगों के अतिरिक्त काव्य में उसकी चर्चा भी नहीं हुई है। वह अन्तरिक्ष के जल के समान निर्मल, नीतिनिपुण तथा गुणवती है ।
. इन्द्र यद्यपि काव्यकथा का सूत्रधार है परन्तु उसका चरित्र अधिक पल्लवित नहीं हुआ है। वह व्यवहार-कुशल, दृढनिश्चयी तथा लोकविद् व्यक्ति है। यह उसकी व्यवहार-कुशलता का ज्वलन्त प्रमाण है कि वीतराग ऋषभ, उसकी नीति-पुष्ट युक्तियों से वैवाहिक जीवन में प्रवेश कर गाहस्थ्य धर्म का प्रवर्तन करते हैं । विवाह के समय जिस सूक्ष्मता तथा तत्परता से वह समस्त लोकचारों का पालन करता है, वह उसके व्यावहारिक ज्ञान तथा लोकनीति का परिचायक है।
इन्द्र स्वर्ग का अधिपति है । देवों के साम्राज्य में उसका अप्रतिहत शासन है। उसके संकेत मात्र से समूचा देववृन्द, ऋषभ के विवाह में धरा पर उतर आता है और उसके आदेशों का निष्ठापूर्वक पालन करता है । पूज्य जनों के प्रति उसके हृदय में असीम श्रद्धा है । ऋषभदेव के चरणों में नत होकर तथा उनके पूर्व भवों एवं परोपकारी कार्यों का गौरवगान कर वह गद्गद हो जाता है । वह अपना समस्त वैभव उनके चरणों में न्यौछावर करने को उद्यत है।
___ उसकी पत्नी शची उसकी छाया है । वह सुनन्दा से भी अधिक उपेक्षित है। भाषा - जैन कुमारसम्भव की प्रमुख विशेषता इसकी उदात्त एवं प्रौढ़ भाषा है । महाकाव्य की ह्रासकालीन रचना होने पर भी इसकी भाषा, माघ अथवा श्रीहर्ष की भाषा की भांति, विकट समासान्त तथा परवर्ती मेघविजयगणि की तरह कष्टसाध्य