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जैन संस्कृत महाकाव्य
रणथम्भोर से निकल पड़ा। दसवें सर्ग में भोज हम्मीर से अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए अलाउद्दीन से जा मिलता है। उसकी दुष्प्रेरणा से अलाउद्दीन ने उल्लूखान के नेतृत्व में, एक विशाल सेना हम्मीर के विरुद्ध भेजी । खल्जी सेना बुरी तरह पराजित हुई। उल्लूखान किसी प्रकार जीवित भागने में सफल हुआ। उधर महिमासाह ने भोज की जागीर जगरा पर छापा मारकर पीथमसिंह को सपरिच्छद बन्दी बनाया । उल्लूखान की दुर्भाग्य-कथा तथा भोज के करुणक्रन्दन से अलाउद्दीन की कोपाग्नि भड़क उठी। ग्यारहवें सर्ग में मुसलमानी सेना द्वारा रणथम्भोर के विफल रोध तथा निसुरतखान की मृत्यु का वर्णन किया गया है। उल्लूखान ने उसका शव दिल्ली भिजवाया। उसकी अन्त्येष्टि के पश्चात् स्वयं अलाउद्दीन ने रणथम्भोर को प्रस्थान किया। बारहवें सर्ग में हम्मीर तथा अलाउद्दीन का दो दिन का घनघोर युद्ध वर्णित है, जिसमें ८५,००० यवन योद्धा खेत रहे । तेरहवें सर्ग में राजपूत वीर, यवनों के सभी धावों को विफल कर देते हैं । यवनों ने खाई पाटने का प्रयास किया । चौहानों ने आग्नेय गोलों से लकड़ी को जला दिया और लाखयुक्त खोलता तेल फेंका जिससे यवन योद्धा जल-भुन गये । बल से दुर्ग को लेना असम्भव जानकर अलाउद्दीन ने कूटनीति का प्रयोग किया। उसने हम्मीर के विश्वस्त सैनिक रतिपाल, रणमल्ल आदि को अपने पक्ष में मिला लिया। निराशा तथा अविश्वास के उस वातावरण में महिमासाह ने अपनी पत्नी तथा बच्चों को तलवार की धार उतारकर अविचल स्वामिभक्ति का परिचय दिया । अन्ततः हम्मीर स्वयं समरभूमि में उतरा और शत्रु के हाथ में पड़ने की आशंका से स्वयं अपना गला काट कर प्राण त्याग दिये । चौदहवें सर्ग में हम्मीर के प्राणोत्सर्ग से चतुर्दिक व्याप्त शोक की अभिव्यक्ति तथा काव्यकार की प्रशस्ति है।
हम्मीरमहाकाव्य की कथावस्तु को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम चार सर्ग, जिनमें हम्मीर के पूर्वजों का वर्णन है, प्रथम खण्ड के अन्तर्गत आते हैं । आठवें से तेरहवें सर्ग तक छह सों का अन्तर्भाव द्वितीय खण्ड में होता है। हम्मीरकाव्य का मुख्य प्रतिपाद्य-हम्मीरकथा--द्वितीय खण्ड में ही निरूपित है। मध्यवर्ती तीन स! (५-७) का काव्य-कथा से कोई सम्बन्ध नहीं है । उन्हेंआसानी से छोड़ा जा सकता था। उनका समावेश केवल महाकाव्य-परिपाटी का निर्वाह करने के लिये किया गया है। नयचन्द्र के काम्यशास्त्रीय विधान के अनुसार काव्य के कलेवर में अलंकृत शृंगारपूर्ण वर्णन उतने ही आवश्यक हैं, जितना भोजन में नमक । ये सर्ग काध्य के ऐतिहासिक इतिवृत्त से क्लान्त पथिक के विश्राम एवं मनोरंजन के लिये सरस शादल हैं । सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए, प्रथम चार सर्गों का १४. रसोऽस्तु यः कोऽपि परं स किंचिन्नास्पृष्टश्रृंगाररसो रसाय । सत्यव्यहो पाकिमपेशलत्वे न स्वादु मोज्यं लवणेन हीनम् ॥
हम्मीरमहाकाव्य, १४॥३६