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जैन संस्कृत महाकाव्य
में उ के अतिशयों का विस्तृत वर्णन है। उनके विहार से दुभिक्ष, महामारी आदि उत्पात तत्काल शान्त हो जाते हैं। व्यक्तित्व की अलौकिकता के कारण उनका स्वर्गवासी देवों के साथ अविच्छेद्य सम्बन्ध है। देवगण सदैव उनकी सेवा में तत्पर रहते हैं। जन्मा.भषेक से लेकर अन्त्येष्टि तक उनके सभी आयोजन देवों द्वारा सम्पन्न किये गये हैं।
पार्श्वनाथ गुणवान् तथा रूपवान् युवक है। यौवन में उनका शारीरिक लावण्य और प्रस्फुटित हो जाता है। राजकुमारी प्रभावती उनके सौन्दर्य एवं गुणों का वर्णन सुनने मात्र से उनमें अनुरक्त हो जाती है। पार्श्वनाथ में वीरता तथा वैराग्य का अद्भुत समन्वय है। वह, पिता को रोक कर, स्वयं यवन राज के विरुद्ध प्रयाण करता है। कमलनाल उखाड़ने में ऐरावत का प्रवृत्त होना हास्यास्पद है। पार्श्वनाथ के प्रताप से भीत होकर यवनराज उनका वशवर्ती बन जाता है और अपनी दुश्चेष्टा के लिये क्षमायाचना करता है। यह उन्हीं के प्रताप का फल है कि यवननरेश कुशस्थल वा घेरा उठा लेता है और प्रसेनजित् के ऊपर से विपत्ति के बादल छंट जाते हैं। प्रसेनजित् कृतज्ञतापूर्वक उससे प्रभावती का विवाह क ने का प्रस्ताव करता है, किन्तु, पिता की अनुमति के बिना, उसे यह मान्य नहीं है । वास्तविकता तो यह है वे विषयभोगों से सर्वथा विरक्त हैं। संयम उनके जीवन का सर्वस्व है । उनके लिये नारी सर्पिणी है, जो, चाहे अनुरक्त हो या विरक्त, पुरुष को डसकर उसका सर्वनाश कर देती है (४.६५३)। उसके पिता को भी यह विश्वास नहीं कि वह विवाह करना स्वीकार करेगा।
किं चैष पार्श्वकुमारो भोगेभ्य विपराङ्मुखः।
आजन्मतो विरक्तात्मा न जाने किं करिष्यति ॥ ४.६४३ किन्तु जन्म से विरक्तात्मा होने पर भी वह पूर्व कर्मभोगों के क्षय के लिये पिता का आदेश शिरोधार्य करता है । प्रभावती उन्हें पति के रूप में पाकर कृतकृत्य हो जाती है। किंतु वैवाहिक सुख उनकी शमवृत्ति को दमित नहीं कर सके । नेमिनाथ के उदात्त चरित से प्रेरणा पाकर उनका संवेग प्रबल हो जाता है और उन्हें संसार कूप के समान तथा विषय खारे जल के समान नीरस प्रतीत होने लगते हैं। फलत: वे राजसी वैभव का परित्याग कर संयमश्री का वरण करते हैं। उनकी सहिष्णुता अनन्त, वस्तुत: अकल्पनीय है ! पूर्व जन्मों में वे कुर्कट अहि, सिंह, भील आदि के मन्तिक उत्पात सम्यक्त्व से सहन करते हैं। वर्तमान भव में असुर मेघमाली के उपसर्ग भी उन्हें विचलित नहीं कर सके । इस साधना की परिणति कैवल्य की प्राप्ति में हुई जो उनके शिवत्व का द्वार है । प्रभावती
कुशस्थल-नरेश प्रसेनजित् की पुत्री प्रभावती काव्य की नायिका है । वह नव.