Book Title: Jain Sanskrit Mahakavya
Author(s): Satyavrat
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 499
________________ जैन संस्कृत महाकाव्य उदाहरणार्थ – हेमकन्दल ( मूंगा), हारदूरा ( द्राक्षा ), भामवती ( क्रोधयुक्ता ), दिवाकीत्ति (नाई), हीनांगी ( चींटी ), सत्रम् (वन) । 1 प्रद्युम्नचरित्र की शैली पुराणों की संवादशैली है । समूचा काव्य मगधराज श्रेणिक की जिज्ञासा की पूर्ति के लिए भगवान् महावीर की धर्मदेशना में उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है । विभिन्न पात्र आपस में प्रश्नोत्तर करते हैं और प्रत्येक विषय का सविस्तार निरूपण किया जाता है । रुक्मिणी तथा कृष्ण के प्रश्नों के उत्तर के रूप में नारद क्रमश: कृष्ण तथा रुक्मिणी के देश, कुल, रूप आदि का जमकर वर्णन करते हैं । यदि दित्ससि तदेहि" "तथोक्ते सा विलक्षोचे (८.२३१), स प्रोचे • सोचे (८.२३२), तदा पप्रच्छ तान् पुत्री ... ऊचुस्ते किं न जानासि ( १०.७८ ) संवादशैली के सूचक ऐसे वाक्यों की काव्य में भरमार है । ****** अलंकार ४८४ भाषा की तरह अलंकार भी कवि के साध्य नहीं हैं । प्रद्युम्नचरित में वे अतीव सहजता से प्रयुक्त हुए हैं । रत्नचन्द्र के लिए उपमा भावाभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम है । उपमा के प्रयोग में उसकी कुशलता का काव्य से अच्छा परिचय 'मिलता है । रुक्मी की सहायता से चेदिराज ऐसे प्रबल हो गया जैसे वायु के सहयोग से अग्नि प्रचण्ड हो जाती है (५.५९ ) । कृष्ण के तेज को न सह सकने के कारण पद्मनाभ अपनी पुरी को इस प्रकार लौट गया जैसे सम्भोग पीड़ा को सहने में असमर्थ नववधू पितृगृह चली जाती है । कृष्णाग्रे स्थातुमसहः सन् पद्मः [स्वां पुरीं ययौ । पुनः पत्युर्नवोढेव गृहं पित्र्यं रतासहा ॥ १३.६३ निम्नांकित पंक्तियों में मेरु- वल्मीक, सूर्य-खद्योत, इन्द्र-इन्द्रगोप इन विरोधी वस्तुओं का समवाय हैं, अतः यहाँ विषम अलंकार है । क्व मेरुः क्व च वल्मीकः क्व सूर्यो ज्योतिरिंगणः । क्व चेन्द्रश्चेन्द्रगोपश्च दृष्टान्तोऽस्त्ययमावयोः ॥ ६.२६४ राजीमती रथनेमि को व्रतभंग की गर्हता का आभास, निम्नलिखित श्लोक में, दृष्टान्त के द्वारा कराती है । ज्वलदग्नौ प्रवेशोऽपि वरं न तु व्रतक्षतिः । युद्धे वरं हि योद्धृणां मरणं न पलायनम् ।। १५.१७ रत्नचन्द्र ने अप्रस्तुतप्रशंसा का भी काफी प्रयोग किया है । रुक्मिणी के सन्देश के उत्तर में कृष्ण का यह आश्वासन अप्रस्तुतप्रशंसा के रूप में आया है । यहाँ अप्रस्तुत हंसी, हंस तथा काकी से क्रमशः रुक्मिणी, कृष्ण तथा सत्यभामा व्यंग्य है ।

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