Book Title: Jain Sanskrit Mahakavya
Author(s): Satyavrat
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 503
________________ ४८८ जैन संस्कृत महाकाव्य सन्तुष्ट करता है। हीरसौभाग्य नैषधचरित का स्मरण कराता है। यदुसुन्दर तथा नषधचरित का तुलनात्मक अध्ययन अतीव उपयोगी है। देवानन्द तथा सप्तसन्धान पण्डितवर्ग के बौद्धिक विलास की सामग्री हैं। श्रीधरचरित में पाठक को विभिन्न शैलियों का प्रपानक रस मिलेगा। इसमें प्रयुक्त लगभग १०० छन्द भी कम चमत्कारजनक नहीं हैं। ये नौ महाकाव्य ऐसे हैं जिन पर काव्यप्रेमी तथा साहित्यसमीक्षक गर्व कर सकता है तथा अन्य काव्यों पर किये गये अपने श्रम को, केवल इनके कारण भी, सार्थक मान सकता है। इन्हें संस्कृत के गौरवशाली महाकाव्यों की श्रेणी में समुचित स्थान मिलना चाहिये । इसका यह अभिप्राय नहीं कि अन्य विवेचित काव्य महत्त्व से शून्य हैं । हमारा दृढ विश्वास है कि जैन संस्कृत-महाकाव्यों के बिना संस्कृत-महाकाव्य के इतिहास को पूर्ण मानने का आग्रह नहीं किया जा सकता। आवश्यकता इस बात की है कि जैन संस्कृत-साहित्य का निष्पक्ष दृष्टि से मूल्यांकन किया जाये और जो उसमें आदेय है, उसे निस्संकोच ग्रहण किया जाये।

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