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प्रद्युम्नचरित : रत्नचन्द्रगणि
सब चालें विफल कर देता है । वस्तुतः उसे शौर्य-प्रदर्शन करना प्रिय है । कनकमाला - के प्रति तथाकथित दुराचरण से क्षुब्ध कालसंवर जब उसे ललकारता है, तो प्रद्युम्न - के रणकौशल से उसके छक्के छूट जाते हैं । परन्तु समस्त वातावरण अपने प्रतिकूल देखकर वह उस स्थान को तुरन्त छोड़ देता है । यह उसकी दूरदर्शिता का द्योतक है।
प्रद्युम्न की शक्ति का कोई ओर-छोर नहीं है । वह अपार तथा अलौकिक है । उसके पराक्रम में प्रज्ञप्ति-विद्या की महत्त्वपूर्ण भूमिका है । उसकी शक्ति तथा प्रज्ञप्ति के कारण वैताढ्य पर्वत पर पूर्वोक्त संकट अनुपम लाभों में परिवर्तित हो जाते हैं और उसे अतुल समृद्धि प्राप्त होती है । द्वारिका में प्रवेश करने से पूर्व वह विद्याबल ही से सेना निर्मित करता है और कृष्ण को निश्शस्त्र कर देता है ( निरस्त्र चकृवान् कृष्णं सद्यो विद्याबलात् सुतः, ८.३१६ ) । वस्तुतः, उसके समक्ष कोई योद्धा नहीं टिक सकता । उसी के शब्दों में वह जगद्विजेता है - सुतोऽहं च जगज्जेता ( ९.९१ ) । प्रज्ञप्ति - विद्या से उसे स्वेच्छानुसार रूप बदलने की क्षमता प्राप्त है । वह - किरात, चाण्डाल, मदारी, द्विज आदि का रूप आसानी से धारण कर सकता है । प्रद्युम्न के कार्यकलाप में कन्याहरण का प्रमुख स्थान है । किरात के वेश में वह दुर्योधन की पुत्री को विवाह स्थल से उठा लाता है । अपने मामा की पुत्री को भोगने तथा छल से हथियाने में भी उसे कोई संकोच नहीं है । किन्तु वह दुश्चरित्र नहीं है । विद्याधरी के उन्मुक्त निमन्त्रण को ठुकरा देना तथा उदधि को हरकर भी उसे सत्यभामा के पुत्र भानु को सौंप देना उसके सच्चारित्र्य के प्रबल प्रमाण हैं । पित्रा च दीयमानां तां नेच्छति स्म श्रियाः सुतः ।
भ्रातृजाया तो ह्येषा ततो मे नौचिती भवेत् ॥ ६.८
व्यवहारकुशल होने के नाते प्रद्युम्न को कार्य की सिद्धि के लिये छल-कौतुक का प्रयोग करने में संकोच नहीं है । वह सत्यभामा के स्थान पर जाम्बवती को कृष्ण के पास भेज देता है, जिससे जाम्बवती को तेजस्वी तथा सत्यभामा को कायर पुत्र प्राप्त होता है । छल से ही वह सत्यभामा के केश कटवा देता है । द्वारिका प्रवेश से पूर्व उसके करतब कौतुकपूर्ण हैं |
प्रद्युम्न के चरित्र में वीरता, व्यावहारिकता, सच्चरित्रता तथा छल का विचित्र गठबन्धन है । नेमिनाथ की द्वारिका - दहन की भविष्यवाणी से भव- वैभव की भंगुरता का भान होने पर वह सर्वस्व छोड़कर प्रव्रज्या ग्रहण करता है और अन्ततः परम पद को प्राप्त होता है ।
कृष्ण
कृष्ण काव्यनायक प्रद्युम्न के पिता हैं । उनका व्यक्तित्व अनेक अमूल्य गुणों का विशाल पुंज है । उनका रूप, वैभव, ऐश्वर्य, भुजबल, धैर्य, दानवीरता, उदारता तथा पूज्यबुद्धि अद्वितीय है ।" उनका सौन्दर्य इतना मोहक है कि रुक्मिणी, नारद से २४. वही, १.८४-८९