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जैन संस्कृत महाकाव्य
रूपक, विरोध, विषम, भ्रान्तिमान्, सन्देह, स्मरण, अर्थान्तरन्यास, व्यतिरेक, लाटानुप्रास आदि अलंकारों को भी काव्य में स्थान मिला है। छन्द
पौराणिक महाकाव्य की परम्परा के अनुसार जम्बूस्वामिचरित में अनुष्टुप् को काव्य रचना का माध्यम बनाया गया है। कुछ सर्गों में, बीच-बीच में अथवा अन्त में, कतिपय अन्य छन्द प्रयुक्त हुए हैं। राजमल्ल ने सारे काव्य में आठ छन्दों का प्रयोग किया है । अनुष्टुप् के अतिरिक्त वे इस प्रकार हैं--वंशस्थ, उपजाति, शार्दूलविक्रीडित, वसन्ततिलका, इन्द्रवज्रा, स्रग्धरा तथा मालिनी। कवि ने अपने कुछ विशेष कथनों के समर्थन में साहित्य से संस्कृत तथा प्राकृत पद्य उद्धृत किये हैं। ये विविध छन्दों में निबद्ध हैं । जम्बूस्वामिचरित के छन्दों की सूची में उन्हें शामिल नहीं किया जा सकता। ऐतिहासिक संकेत
___ जम्बूस्वामिचरित में चगताई जाति में उत्पन्न मुगल सम्राट् बाबर, हुमाऊँ तथा अकबर के विषय में उपयोगी जानकारी निहित है। प्रथम दो सम्राटों का तो सरसरा-सा वर्णन किया गया है, अकबर के प्रताप तथा विजयों का अपेक्षाकृत विस्तृत वर्णन है। कवि ने उसकी चित्तौड़, गुजरात तथा सूरत-दुर्ग की विजयों का विशेष उल्लेख किया है । कुख्यात जजिया की सम्राट् द्वारा समाप्ति और उसकी दयालुता को काव्य में कृतज्ञतापूर्वक स्मरण किया गया है।
जैसा पहिले कहा गया है, जम्बूस्वामिचरित की रचना भटानिया (अलीगढ) के निवासी शाह टोडर के अनुरोध पर की गयी थी। राजमल्ल ने उसकी वंशपरम्परा का विस्तारपूर्वक निरूपण किया है । टोडर अरजानीपुत्र कृष्णामंगल चौधरी तथा वैष्णवमतानुयायी गढमल्ल साहु का कृपा-पात्र था। उसे टकसाल के कार्य में अतीव दक्षता प्राप्त थी। शाह टोडर काष्ठासंघी कुमारसेन के आम्नायी पासा साहु का पुत्र था। उसकी पुत्री कौसुभी पतिपरायणा स्त्री थी। ऋषिदास, मोहन तथा रुपमांगद उसके तीन गुणवान् पुत्र थे।
___जम्बूस्वामिचरित उस उद्देश्य की प्राप्ति में सफल हआ है, जिससे इसकी रचना की गयी है। काव्य की दृष्टि से भी यह नगण्य नहीं है। प्रसंगवश इसमें तत्कालीन युगचेतना का चित्रण भी हुआ है।
४७. वही, १.६-३१ ४८. वही, १.६०-७८