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श्रीधरचरित : माणिक्यसुन्दरसूरि
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है । वह स्वाभिमान की रक्षा के लिए युद्ध करता है किन्तु पराजित होते समय (और विजयी होते हुए भी) उसमें सहसा दया का उद्रेक हो जाता है जिससे उसमें युद्ध से विरत होने की लालसा बलवती हो जाती है । इसी प्रकार वह घोर विलास में मग्न रहता है किन्तु कालान्तर में, मुनि के धर्मोपदेश से ही सही, वह संसार से घृणा करने लगता है, अपने पूर्व आचरण पर पश्चात्ताप करता है और अन्ततः जगत् से विरक्त हो जाता है । सम्भवतः इसका कारण कवि की दोलायमान चित्तवृत्ति है । वह अपने नायक को महाकाव्य-नायक के अनुरूप शौर्य सम्पन्न तथा युद्धविजयी बनाना चाहता है किन्तु उसकी धार्मिक आस्था उसे तुरन्त हिंसा तथा संसार की नश्वरता के प्रति विद्रोह करने को विवश कर देती है । वज्रदाढ
वज्रदाढ को काव्य का प्रतिनायक माना जा सकता है । वह विजयचन्द्र का पूर्वजन्म का अग्रज चन्द्र है। श्रीधर (पूर्वभव का विजयचन्द्र) की पत्नी गौरी के प्रति अनुरक्ति के कारण वह सुलोचना (गौरी) को हर ले जाता है। वज्रदाढ पराक्रमी तथा बलवान् है । विजयचन्द्र की तरह उसे भी दैवी सहायता प्राप्त है । उसके भुजबल से एक बार तो विजय की सेना में भगदड़ मच जाती है। मुनि से अपने पूर्व भव का वृत्तान्त सुनकर वह सर्वविरति स्वीकार करता है। समाज-चित्रण
श्रीधरचरित में तत्कालीन समाज के कतिपय विश्वासों, मान्यताओं तथा अन्य गतिविधियों का कुछ संकेत मिलता है। शकुनों की फलवत्ता पर समाज को अट विश्वास था । अपशकुनों का परिणाम भयावह तथा अनर्थकारी माना जाता था। वज्रदाढ ने अपशकुनों की उपेक्षा करके विजयचन्द्र के विरुद्ध प्रयाण किया था। फलतः उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा। आजकल की भाँति उस समय भी काक का स्वर प्रिय के आगमन का सूचक माना जाता था। प्रिय-मिलन के लिए अधीर युवतियाँ इसीलिए कव्वे को स्वर्ण-पिंजरे में डालकर उसकी आवाज सुनने को लालायित रहती थीं ।२९
___रत्नांगद के पुत्र-पुत्री के पूर्वभव के प्रसंग में, काव्य में सहजात भाई-बहिन के विवाह का उल्लेख है । आश्चर्य यह है कि यह विवाह उनके पिता द्वारा आयोजित किया गया था । परन्तु यह सर्वमान्य सामाजिक नियम का अपवाद प्रतीत होता है। समाज में इसे घृणित तथा धर्मनाशक कुकर्म माना जाता था।" २८. वही, ८.३६३ २६. वही, ८.१४१ ३०. वही, ८.५५,६१