________________
पार्श्वनाथकाव्य : पद्मसुन्दर
४०६ दीपिकाएँ प्रज्वलित हो उठीं। चार मास के कठोर तप के उपरान्त उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। देवगण प्रभु के समवसरण की रचना करते हैं । सातवें सर्ग में प्रभु की देशना तथा सम्मेताद्रि पर उनकी निर्वाण-प्राप्ति का वर्णन है। इन्द्र उनकी निर्वाण पूजा करता है और उनकी भस्मी क्षीरसागर को भेंट कर देता है।
___ धार्मिक आवेश के कारण पार्श्वनाथकाव्य के रचयिता को कथानक की अधिक सुध नहीं है । पौराणिक कथानक में काव्योचित परिवर्तन करके उसका सफल निर्वाह करना उसे अभीष्ट भी नहीं है। पुराण-पुरुषों के परम्परागत वृत्त से उनका गुणगान करना तथा पुण्यलाभ करना ही उसका ध्येय है। प्रथम दो सर्गों के भवान्तरवर्णनों का मूल कथानक से अधिक चेतन सम्बन्ध नहीं है। काव्यनायक के चरित वाले भाग में भी स्तोत्रों, दार्शनिक सिद्धान्तों तथा अन्य वर्णनों ने काफी स्थान हड़प लिया है । इसका परिणाम यह हुआ कि काव्य में पार्श्वनाथ के जीवन के कुछ प्रमुख प्रसंगों का ही प्रतिपादन हो सका है । रसयोजना
समूचे मूल परिवेश-सहित गृहीत होने के कारण पुराण-पुरुषों के चरित के विकास तथा उसकी विविध घटनाओं का एक पूर्व निश्चित क्रम है। पौराणिक काव्यों के लेखकों ने उसमें नवीन उद्भावना अथवा अन्य परिवर्तन करने का बहुत कम माहस किया है । अतः इन काव्यों में रस-परिपाक की एक निश्चित तथा रूढ प्रक्रिया है। पौराणिक काव्यों के नायकों का चरम उद्देश्य जीवन के समस्त सुख-वैभव छोड़कर, साधना के मार्ग से, निर्वाण प्राप्त करना है। जीवन की नश्वरता तथा भोगों की छलना के बोध से उनमें संवेग की उत्पत्ति होती है, जो काव्य में शान्तरस के रूप में परिणत होता है। कर्मों के क्षय के लिये वे गार्हस्थ्य जीवन स्वीकार करते हैं और युद्ध के द्वारा अपनी वीरता की स्थापना करते हैं, जो महाकाव्य के नायक के लिये आवश्यक है। इन प्रसंगों के चित्रण में क्रमशः शृंगार तथा वीररस की अभिव्यक्ति होती है। किन्तु ये सब शान्तरस के महासागर में विलीन हो जाते हैं। पार्श्वनाथकाव्य का रसचित्रण इसी प्रक्रिया पर आधारित है।
कवि के शब्दों में पार्श्वनाथकाव्य 'शृंगार की छलकती सागर' है-काव्येऽस्मिन् मधुमाधुरीपरिणते शृंगार गारके (१.२)। पता नहीं, इस धारणा का क्या आधार है ? काव्य को आद्योपान्त पढ़ने के पश्चात् इससे पाठक को शृंगार के कुछ कण ही प्राप्त होते हैं। उन की सृष्टि भी मानव-प्रणय के अन्तर्गत नहीं, बल्कि पशुपक्षियों की कामके लयों में हुई है। और इस नाते उसे रस की अपेक्षा रसाभास कहना अधिक उपयुक्त होगा। पोतनाधिपति के अमात्य का पुत्र मरुभूति मर कर भवान्तर में गज बनता है और उसके अग्रज की पत्नी वरुणा हथिनी के रूप में