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२२. पार्श्वनाथचरित : हेमविजयगरिण
तपागच्छीय हेमविजयगणि का पार्श्वनाथचरित' आलोच्य युग का विशुद्ध पौराणिक महाकाव्य है । इसके छह बृहत्काय सर्गों में तीर्थंकर पार्श्वनाथ का चरित्र निरूपित करने का उपक्रम किया गया है। पार्श्वनाथ के वर्तमान ( अन्तिम ) भव का वृत्त काव्य का गौण विषय प्रतीत होता है; इसका अधिकांश, पौराणिक काव्य की प्रकृति के अनुरूप, उनके जन्मान्तरों के विचित्र किन्तु अनिवार्यतः संवेगजनक वृत्तान्तों से आच्छादित है, जो मूल इतिवृत्त की पृष्ठभूमि निर्मित करते हुए उसके स्वरूप का निर्धारण करते हैं । कवि का प्रमुख उद्देश्य कथानक के विविध प्रसंगों से कर्म - सिद्धान्त की अटलता की प्रतिष्ठा करना तथा आर्हत धर्म की करुणा एवं पवित्रता की प्रख्यापना के द्वारा उसे सर्वग्राह्य बनाना है ।
पार्श्वनाथचरित का महाकाव्यत्व
पार्श्वनाथचरित, कथावस्तु की परिकल्पना तथा विनियोग की दृष्टि से, यद्यपि उपजीव्य पुराण की प्रतिमूर्ति है तथापि परिभाषा के परिपालन से इसे महाकाव्यरूप देने की कवि की व्यग्रता स्पष्ट है । इसके आधार - फलक में, महाकाव्य के कलेवर के लिए वांछित, पर्याप्त व्यापकता है । इसके कथानक का छह सर्गों में विभाजन शास्त्रीय मानदण्ड के अनुरूप नहीं है, किन्तु काव्य में सर्गों की संख्या की कमी की पूर्ति उनके परिमाण से हो जाती है । पार्श्वनाथचरित का कथानक पार्श्वप्रभु के प्रेरक चरित पर आधारित है । कवि के शब्दों में यह 'सच्चरित्र से चमत्कृत' ( सच्चरित्र - चमत्कारी ) है | धीर - प्रशान्त गुणों से सम्पन्न, क्षत्रियकुल- प्रसूत पार्श्वनाथ काव्य के नायक हैं। उनकी धीरता तथा प्रशान्तता के पोषक, काव्य में वर्णित वे अगणित उपसर्ग हैं, जिन्हें वे वैर भाव के बिना सहज समत्व से सह कर अन्ततः वर्तमान भव प्राप्त करते हैं । उनके सम्यक्त्व से अनुप्राणित काव्य में शान्तरस की प्रधानता स्वाभाविक थी, जो अन्य रसों के साथ इसकी रसवत्ता को सघन बनाता है । पार्श्वचरित की रचना धर्म से प्रेरित है । विविध प्रकार से जिन-धर्म की दया, अहिंसा, समता आदि का प्रतिपादन करके उसका उन्नयन करना काव्य का लक्ष्य है ।
सर्वान्त के कतिपय पद्यों को छोड़कर समूचे काव्य की रचना अनुष्टुप् छन्द में हुई है । छन्दों का यह विधान पश्चिमी काव्यशास्त्र के अधिक अनुकूल है, जिसमें महाकाव्य के निर्विघ्न प्रवाह के लिये एक छन्द के प्रयोग की आशंसा की गयी है ।
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१. मुनि मोहनलाल जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी, संख्या १, सम्वत् १९७२.