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पार्श्वनाथकाव्य : पद्मसुन्दर
अभूषणोऽपि सुमगोऽनधीतोऽपि विदांवरः ।
अदिग्धोsपि सगंधांगः संस्कारो भक्तिरेव न ॥ ३.१६४
४१६
व्यतिरेक;
पार्श्वनाथ काव्य में प्रयुक्त अन्य अलंकारों में अनुप्रास, यमक, उत्प्रेक्षा, काव्यलिंग, तद्गुण, भ्रान्तिमान्, रूपक, सहोक्ति तथा दृष्टान्त महत्त्वपूर्ण
है ।
छन्दयोजना
छन्दों के प्रयोग में पद्मसुन्दर ने शास्त्र का पालन किया है । काव्य के प्रथम सर्ग में प्रयुक्त विभिन्न छन्द उसके छन्दकौशल के परिचायक हैं । इस सर्ग में ग्यारह छन्दों को काव्यरचना का माध्यम बनाया गया है । उनके नाम इस प्रकार हैंखग्धरा, शार्दूलविक्रीडित, वसन्ततिलका, शालिनी, तोटक, उपेन्द्रवज्रा, अनुष्टुप् रथोद्धता, द्रुतविम्बित, वंशस्थ तथा आर्या । अन्य सर्गों में इनके अतिरिक्त केवल एक नया छन्द - मालिनी प्रयुक्त हुआ है। इस प्रकार समूचा काव्य १२ छन्दों में निबद्ध है ।
पार्श्वनाथ के जीवन पर आधारित हे विजयगणि का पार्श्वनाथचरित, जैसा हम आगे देखेंगे, काव्य तथा पौराणिक, दोनों दृष्टियों से पद्मसुन्दर के काव्य की अपेक्षा अधिक श्लाघनीय है । पार्श्वनाथकाव्य के अपेक्षाकृत संक्षिप्त फलक पर पार्श्वचरित की कुछ रेखाएँ ही उभर सकी हैं । कवि का ध्येय काव्य के व्याज से स्वधर्म तथा आराध्य का गौरव गान करना है । इसमें उसे असफल नहीं कहा जा सकता ।
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