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पार्श्वनाथचरित : हेमविजयगणि
को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई । उनकी धर्मदेशना से उनके पिता अश्वसेन, माता तथा पत्नी भी दीक्षित हो जाते हैं । छठे सर्ग में ताम्रलिप्ता के सार्थवाह सागरदत्त, नागपुरी के बन्धुदत्त तथा पुण्ड्रवर्धन के श्रीधर के विचित्र किन्तु रोचक वर्णन हैं । अपने पूर्ववर्ती तथा भावी भवों का रोमहर्षक विवरण सुनकर वे तापसव्रत स्वीकार करते हैं । निर्वाण का समय निकट आने पर प्रभु सम्मेताद्रि पर अनेक श्रमणों के साथ, अनशन आराधना से शरीर त्याग देते हैं । इन्द्र, प्रभु तथा श्रमणों के शव पृथक्-पृथक् चिताओं को भेंट कर देता है ।
पार्श्वनाथचरित का मुख्य कथानक भवान्तरों के अनन्त वर्णनों तथा रोमांचक विषयान्तरों में ऐसा उलझा हुआ है कि उनकी तुलना में वह गौण-सा प्रतीत होता है। प्रथम तीन सर्ग अर्थात् काव्य का पूर्वार्द्ध मरुभूति और कमठ के पूर्व भवों के वर्णन - जाल से आच्छादित है । ये मूल कथानक के अवयव नहीं, उसकी प्रस्तावना हैं । प्रस्तावना को नाटक के समान आकार देना कथा - प्रवाह के प्रति कवि के प्रमाद का परिचायक है । कथान्विति की दृष्टि से ये सर्ग सर्वथा अनावश्यक तथा अप्रासंगिक
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हैं । इन्हें आसानी से छोड़ा जा सकता था । मुख्य कथा के साथ इनका अत्यन्त सूक्ष्म सम्बन्ध है । पार्श्वनाथ का मूल चरित भी, उनके जन्माभिषेक, प्रव्रज्या, निष्क्रमण, विहार आदि के पौराणिक वर्णनों, स्तोत्रों, धर्मोपदेशों तथा अवान्तर - कथाओं की पर्तों में दब गया है । छठे सर्ग के अधिकांश का कथानक से केवल इतना सम्बन्ध है कि उसमें वर्णित पात्र पार्श्वप्रभु से अपने पूर्वजन्मों का वर्णन सुनकर, जिनके कारण उन्हें वर्तमान जीवन में यातनाएँ सहनी पड़ीं, प्रतिबोध पाकर संयम व्रत ग्रहण करते हैं । इस सर्ग का अधिकतर भाग बन्धुदत्त के विचित्र वृत्त ने हड़प लिया है । पार्श्वचरित से सम्बन्धित इस सर्ग की सामग्री को सरलता से सौ-डेढ़ सौ पद्यों में समेटा जा सकता है । यह सच है कि आकर-ग्रन्थों में पार्श्वचरित इसी रूप में निरूपित है किन्तु उसे यथावत् ग्रहण करना महाकाव्य के लिये आवश्यक नहीं है । काव्य के द्वारा कर्मफल की अवश्यम्भाविता तथा जिनधर्म के गौरव का प्रतिपादन करना कवि का मुख्य लक्ष्य है ।
पार्श्वनाथचरित का आधारस्रोत
दोनों सम्प्रदायों के पुराणों में जैनधर्म के प्रसिद्ध ६३ महापुरुषों के चरितों
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दाता सदावा वारा व हवा " का निरूपण किया गया है । उत्तरवर्ती कवियों ने सम्प्रदाय-भेद से इन ग्रन्थों को अपनी रचनाओं का आधार बनाया है । श्वेताम्बर हेमविजय के प्रस्तुत पार्श्वनाथचरित का स्रोत आचार्य हेमचन्द्र का त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित है ( ६-२-४) । त्रि० श० पु० चरित में निरूपित पार्श्वचरित के साथ हेमविजय के काव्य की तुलना से स्पष्ट है कि पार्श्वनाथचरित हेमचन्द्र के ग्रन्थ की सच्ची प्रतिकृति है । पार्श्वनाथ • के पूर्वभवों तथा मूल कथानक के प्रत्येक प्रसंग तथा घटना के निरूपण में हेमविजय