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जैन संस्कृत महाकाव्य जन्म लेतौ है । उनकी प्रणयकेलि में सम्भोग शृंगार के अनुभावों की कमनीय अभि. व्यक्ति हुई है।
कान्तया स विचचार कानने सल्लकीकवलमपितं तया। तं चखाद जलकेलिष्वयं तां सिषेच करसीकरैर्गजः । १.२५ आस्फालयन् विहितबंहितनाद एष शिश्लेष तत्र करिणी करलालनेन ॥१.२६
पार्श्वनाथकाव्य की मूल प्रकृति शमप्रधान है। तीर्थंकर के जीवन पर आधारित होने के कारण, जिसने राजसी वैभव तथा सम्पदा को तणवत् त्याग कर निरीहता का अक्षय सुख स्वीकार किया था, पार्श्वनाथकाव्य में शान्त रस की प्रधानता है। अरविन्द के संयम-ग्रहण, देवराज की जिनस्तुति आदि प्रसंगों में शान्तरस का पल्लवन हुआ है, किन्तु उसकी तीव्रतम व्यंजना पार्श्व की दीक्षा-पूर्व चिंतन-धारा में दिखाई देती है। साकेतराज के दूत के आगमन से, पूर्व जन्म में, अर्हद्गोत्र की प्राप्ति का स्मरण होने से उसमें निर्वेद की उत्पत्ति होती है, जो काव्य में शान्त रस का रूप लेता है।
निर्द्वन्द्वत्वं सौख्यमेवाहुराप्ताः सद्वन्द्वानां रागिणां तत्कुत्स्त्यम् । तृष्णामोहायासकृच्चान्यविघ्नं सौख्यं किं स्यादापदां भाजनं यत् ॥५.७२ भोगास्तावदापातरम्याः पर्यन्ते ते स्वान्तसन्तापमूलं । तद्घानाय ज्ञानिनो द्राग्यतन्ते भोगान् रोगानेव मत्वाप्ततत्त्वाः ॥ ५.७४ तस्माद् ब्रह्माद्वैतमव्यक्तलिगं ज्ञानानन्तज्योतिरुद्योतमानं । नित्यानन्दं चिद्गुणोज्जम्भमाणं स्वात्मारामं शर्म धाम प्रपद्ये ॥ ५.७८
पार्श्वनाथकाव्य में शृंगार के अतिरिक्त वात्सल्य, अद्भुत तथा वीर, शान्त के अंगभूत रस हैं । वात्सल्यरस की निष्पत्ति स्वभावत: शिशु पार्श्व की बाल-चेष्टाओं में दिखाई देती है । आंगन में लड़खड़ाती गति से चलते शिशु की तुतलाती बातें सुनकर माता-पिता का हृदय वात्सल्य से भर जाता है।
शिशुः स्मितं क्वचित्तेने रिखन्मणिमयांगणे । बिभ्रच्छशवलीलां स पित्रोच्दमवर्धयत् ॥ ४.१४
अलौकिकता अथवा अतिप्राकृतिकता पौराणिक काव्यों की निजी विशेषता है, यह कहना पुनरुक्ति मात्र है। पार्श्वनाथकाव्य में ऐसी घटनाओं की भरमार है, जो व्यावहारिक जगत् में असम्भव तथा अविश्वसनीय हैं। इनमें से कुछ का उल्लेख काव्य के स्वरूप के प्रसंग में किया गया है। ये अलौकिक घटनाएँ 'अद्भुत' की जननी हैं। धन्यनृप के प्रासाद में पार्श्वप्रभु के पारणा करने पर, वहाँ सहसा अन्न की वर्षा हुई, देवताओं ने पुष्प बरसाए, दिशाएँ यकायक मृदंगों से ध्वनित हो गयीं तथा शीतल बयार चलने लगी। इन अतिप्राकृतिक घटनाओं का निरूपण अद्भुतरस की सृष्टि करता है।