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जैन संस्कृत महाकाव्य
जो सम्मानपूर्वक अभिनन्दन करता है, वह उसके आतिथ्य, शिष्टता तथा पूज्य - पूजा का प्रतीक है।
विजयचन्द्र
काव्यनायक विजयचन्द्र का चरित्र राजोचित विशेषताओं के अतिरिक्त कतिपय दुर्लभ मानवीय सद्गुणों से विभूषित है । वह अतीव सुन्दर है । यौवन- कोकिल के कूकने पर उसका शरीर लावण्य की वसन्तश्री से व्याप्त हो जाता है । वस्तुतः वह शरचापहीन काम है । अनुपम सुन्दरियाँ उसे देखने मात्र से कामाभिभूत हो जाती हैं ।
विजयचन्द्र पितृवत्सल पुत्र है । उसकी आचारसंहिता में पिता की आज्ञा अनुलंघनीय है । पिता का सन्देश मिलते ही वह हस्तिनापुर का समृद्ध राज्य तृणवत् छोड़कर तुरन्त पिता की राजधानी लौट आता है । पिता के आदेश से ही वह सुलोचना के स्वयंवर में भाग लेने के लिए रत्नपुर जाता है ।
विजयचन्द्र का हृदय पर दुःखकातरता तथा दया के अदम्य प्रवाह से आप्लावित है । वह रत्नावली को नरमेध के बचाने के लिए निष्ठुर योगी को, उसके बदले में, अपना मांस देने को तैयार है । मृत युवती कनकमाला के स्वजनों के करुण क्रन्दन से उसका कोमल हृदय द्रवित हो जाता है । फलतः वह उसे गारुडमंत्र से पुनर्जीवित कर देता है । पर दुःखकातरता के कारण ही वह शरणागत की रक्षा करना अपना कर्त्तव्य समझता है । निशाचर महाकाल की समस्त धमकियों तथा प्रलोभनों को ठुकरा कर वह शरणागत हव्य पुरुषों को नरमेध से बचाने के लिए कृतसंकल्प है और इसके लिए अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार है । दूसरे के प्राणों से अपनी रक्षा करना तो उसके लिए विषभक्षण के समान है ( ६.६१ ) 1 वह राजोचित तेज से सम्पन्न है । वाराणसी - नरेश तो उसके अतिशय की सूचना-मात्र से आत्म-समर्पण कर देता है । वज्रदाढ आदि भी उसकी वीरता से भूमिसात् हो जाते हैं । अवश्य ही उसे चेटक की सहायता उपलब्ध है, किन्तु इन विजयों का श्रेय उसके भुजबल तथा सूझबूझ को कम नहीं है ।
वह धर्मपरायण युवक है । यौवन में मुनीश्वर से अपने भावी भव तथा शिवत्वप्राप्ति की भविष्यवाणी सुनकर वह तत्परता से पार्श्वभक्ति में लीन हो जाता है । जयन्त मुनि से संयमश्री का यथार्थ स्वरूप जानकर उसमें विरक्ति का उद्रेक होता है और वह राजसुलभ वैभव छोड़कर दीक्षा ग्रहण कर लेता है ।
दृष्टि
अन्तिम दो सर्गों में उसके चरित्र में अनेक वैचित्र्यों तथा विरोधों का समावेश होता है । भूतों की वाणी सुनना, मन्त्रसाधना करना, स्वेच्छा से रूप-परिवर्तन करना आदि कुछ ऐसी बाते हैं, जो एक लोककथा के नायक के लिए अधिक उपयुक्त हैं । इन सर्गों में उसका आचरण मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी तर्कसंगत नहीं