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यशोधरचरित्र : पद्मनाभकायस्थ
का प्रयोग सरसता लाने के लिये किया है। कुछ सूक्तियां रोचक हैं-न काफमाकाक्षति राजहंसी (३.४७), कर्मणो महती गतिः (६.११), असत्संसर्गतः कुत्र विवेकः (७.१०२) अलंकार
__ पौराणिक काव्यों के कलापक्ष को समृद्ध बनाना उनके लेखकों का लक्ष्य नहीं है । साधारण सुविज्ञात अलंकार ही उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम बने हैं । पद्मनाभ उपमा का मर्मज्ञ है । उसके अप्रस्तुतों का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। प्रकृति पर आधारित यह उपमा अतीव रोचक है। गुणों ने महाराज यशोध के हृदय से दोषों को इस प्रकार निकाल दिया जैसे प्रातःकालीन सूर्य की किरणें कमलकोश से भ्रमरों को निकाल देती है।
दोषान् निःकाश्य विविशुर्यच्चित्तं सकलगुणाः ।
भंगान कमलकोशेभ्यः प्रातः सूर्यकरा इव ॥२.४५ परिसंख्या का भी कवि ने पर्याप्त प्रयोग किया है। परिसंख्या से उसे कुछ ऐसा अनुराग है कि नगरवर्णन में वह बार-बार इनका प्रयोग करता है। परिसंख्या को नगरवर्णन का माध्यम बनाना जैन काव्यों की प्रवृत्ति है। राजपुर के प्रस्तुत वर्णन में रति, करिकपोलों, केशों तथा व्याकरण-शास्त्र से अन्य पदार्थों का व्यवच्छेद होने से परिसंख्या अलंकार है।।
द्विजाघातो रते यत्र मदः करिकपोलयोः।।
मलिनात्मा कचे स्त्रीणां पदशास्त्रे निपातनम् ॥१.२२ अमृतमती की दुश्चरित्रता का वर्णन अप्रस्तुप्रशंसा से किया गया है । यहाँ अप्रस्तुत सूर्य, सरोजिनी तथा दादुर से क्रमशः यशोधर, अमृतमती तथा कुबड़ा व्यंग्य
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सदैव मित्रेण समं प्रसन्ना सरोजिनी या कुरुते विलासम् ।
भेकेन साकं रमतेऽथ सैव यदत्र हेतुर्जडसंगवासः ॥३.१४३ यशोधर के भवान्तर-वर्णन के इस पद्य में जीवन के साथ वीर्य के स्खलन का उल्लेख होने से सहोक्ति अलंकार है।
समं जीवेन संक्रान्तः शुक्रस्तद्बर्करोदरे ।५.१२४ ___ यशोधरचरित्र में सुन्दर स्वभावोक्तियाँ विद्यमान हैं। प्रकृति-वर्णन में इनका बाहुल्य है। धान के खेतों की रखवाली करने वाली गोपबालाओं का यह वर्णन अपनी स्वाभाविकता के कारण उल्लेखनीय है।
क्षेत्रे क्षेत्रे यतश्चारुकर्णविश्रान्तलोचनाः ।
गायन्ति ललितं गीतं मधुरं शालिपालिकाः ॥१.२० मुनि सुदत्त, अभयरुचि तथा अभयमती को तापस जीवन की कठोरता का