________________
श्रीधरचरित : माणिक्यसुन्दरसूरि
३७३
बाहुल्य है। इसे महाकाव्योचित परिवेश देने के लिये कवि ने अपना कथानक विविध वस्तु-वर्णनों से मांसल बनाकर ग्रथित किया है। काव्य के उत्तरार्द्ध में कवि की वर्णनात्मक प्रवृत्ति विकराल रूप धारण कर लेती है यद्यपि पूर्वार्द्ध में भी गजभ्रम, रत्नावली तथा कनकमाला की अवान्तर कथाओं का समावेश किया गया है। छठा सर्ग पर्वत, प्रभात, सूर्योदय तथा रत्नपुर के वर्णनों से तथा सप्तम सर्ग स्वयम्वरवर्णन से परपूर्ण है, जो रोचक होते हुए भी कथानक के प्रवाह में बाधक हैं। आठवें सर्ग के साथ हम काव्य के विचित्र वातावरण में पदार्पण करते हैं। आठवें तथा नवें सर्ग का संसार यक्षों, विद्याधरों, सिद्धों, नागों, युद्धों, नरमेध, स्त्रीहरण, विद्यासाधना, रूप परिवर्तन तथा चमत्कारों का अजीब संसार है। इनमें अतिप्राकृतिक तत्त्वों, अबाध वर्णनों तथा विषयान्तरों का इतना प्राचुर्य है कि ये सर्ग (विशेषतः अष्टम सर्ग) काव्य की अपेक्षा रोमांचक कथा प्रतीत होते हैं। ८३२ पद्यों के इन सर्गों की वेदी पर कवि को बलिविरोधी होते हुए भी मूलकथा की बलि देनी पड़ी है। काव्य की जो कथा सातवें सर्ग तक लंगडाती चली आ रही थी, वह आठवें सर्ग में आकर एकदा ढेर हो जाती है। अपने चरितनायक की शूरता, साधनसम्पन्नता; कष्टसहिष्णुता तथा कार्यनिष्ठा की प्रतिष्ठा करने के लिये कवि ने इस सर्ग का अनावश्यक विस्तार किया है तथा सार्वजनिक वाहन की भाँति इसमें विविध प्रकार की सामग्री भर दी है । ऐसा करके वह कथानक से भटक गया है । माणिक्यसुन्दर को प्राप्त पूर्ववर्ती कवियों का दाय
श्रीधरचरित के कुछ अंशों की रचना में माणिक्यसुन्दर कालिदास के रघुवंश तथा माघकाव्य के ऋणी हैं। शिशुपालवध के प्रथम सर्ग में सिंहासनासीन श्रीकृष्ण आकाश से अवतरित होते नारद को देखकर उनके विषय में नाना तर्क-वितर्क करते हैं। कुशल-प्रश्न तथा स्वागत-अभिवादन के पश्चात् नारद श्रीकृष्ण को शिशुपाल का वध करने को प्रेरित करते हैं। श्रीधरचरित के द्वितीय सर्ग में मंगलपुरनरेश के सभाभवन में, गगन से एक सिद्धपुरुष के अवतीर्ण होने का वर्णन है। जयचन्द्र तथा उसके सभासद् उसकी वास्तविकता जानने के लिये ऊहापोह करते हैं। नारद की भाँति उसका भी यथोचित अभिनन्दन किया जाता है।
___ कालिदास का प्रभाव काव्य के सातवें सर्ग में परिलक्षित होता है, जहाँ राजकुमारी सुलोचना के स्वयम्बर का वर्णन किया गया है। महाकवि की तरह माणिक्यसुन्दर ने भी, कुमारी के मण्डप में प्रविष्ट होने पर, पहले आगन्तुक राजाओं की कामजन्य चेष्टाओं का चित्रण किया है जो सुलोचना को पाने की उनकी अधीरता की समर्थ अभिव्यक्ति है। तत्पश्चात् सुनन्दा के समान वेत्रधारिणी यशोधरा कुमारी को उपस्थित राजाओं का वैशिष्ट्ययुक्त परिचय देती है । देश के जिन भूभागों के राजा स्वयम्बर में आए थे, उनमें से कुछ के नाम रघुवंश तथा श्रीधरचरित की