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जैन संस्कृत महाकाव्य
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आक्रमण को रोक कर म्लेच्छसेना को विक्षत कर देना वस्तुपाल के कुशल संचालन का प्रतीक है । उनकी कूटनीति सदा सक्रिय रहती है । वीरधवल जिस भीमसिंह को युद्धक्षेत्र में पराजित न कर सका, वस्तुपाल उसे अपनी कूटनीति से परास्त कर देता है | दिल्लीपति मोजदीन को युद्ध में दण्डित करके पुनः उसका विश्वास तथा प्रेम प्राप्त कर लेना उसकी कूटनीति की अन्य सफलता है ।
वस्तुपाल - तेजःपाल साहित्य - रसिक मन्त्री हैं । उनकी साहित्यिक चेतना प्रशासन के मरुथल में लुप्त नहीं हुई है । वे विद्वानों तथा कवियों को प्रश्रय देकर एक ओर साहित्य का पोषण करते हैं, दूसरी ओर अपनी काव्यमर्मज्ञता का परिचय देते हैं । काव्य में जिन कवियों की सूक्तियों का संकलन हुआ है, उनमें से अधिकतर को उनका उदार आश्रय प्राप्त था । वस्तुपाल का विद्यामण्डल प्रसिद्ध है । वह स्वयं ख्यातिप्राप्त कवि था । सुमधुर पद्यों पर स्वर्णकोश लुटा देना उनकी काव्य - रसिकता का द्योतक है । इस दृष्टि से वे विक्रम, मुंज, भोज आदि साहित्यरसिक दानवीरों की स्मृति ताजा करते हैं ।
श्रीकर्ण - विक्रम दधीचि - मुंज - भोजाद्युर्वीश्वरा भुवनमण्डन वस्तुपाल ।
दानैकवीरपुरुषा सममेव नीताः प्रत्यक्षतां कलियुगे भवता कवीनाम् ॥ ४.११५ महामात्य से बहुमूल्य उपहार पाकर विद्वानों का रूप इतना बदल जाता है कि उन्हें अपनी पत्नियों को भी विविध शपथों के द्वारा अपने व्यक्तित्व की वास्त विकता का विश्वास दिलाना पड़ता है" । अपने साहित्य प्रेम के स्मारक -स्वरूप पुस्त -- कालयों की स्थापना करके वे जनता में बौद्धिक चेतना जाग्रत करने में प्रशंसनीय योग देते हैं ।
उनकी यह दानशीलता लोकोपयोगी कार्यों में भी प्रत्यक्ष है । अपने प्रजा-वात्सल्य तथा जनकल्याण की भावना को मूर्त रूप देने के लिये वे स्थान-स्थान पर प्रपाओं, धर्मशालाओं तथा कूपों का निर्माण करवाते हैं तथा सत्रागारों की व्यवस्था करते हैं ।
वस्तुपाल - तेजःपाल के चरित्र की मुख्य विशेषता यह है कि वे आर्हत धर्म के महान् प्रभावक हैं । इस दृष्टि से, जैन धर्म के इतिहास में, हेमचन्द्र तथा कुमारपाल के पश्चात् इन्हीं का स्थान है । कवि के शब्दों में उनका जन्म ही जैन धर्म के उन्नयन के लिए हुआ है (७.३९९ ) । आबू का नेमिनाथ मन्दिर वस्तुपाल की धर्म-निष्ठा का शाश्वत स्मारक है । काव्य में उनकी तीर्थ-यात्राओं, बिम्ब-प्रतिष्ठा, जीर्णोद्धार आदि धार्मिक अनुष्ठानों की विस्तृत तालिका दी गयी है ।
इस प्रकार वस्तुपाल - तेजःपाल के चरित्र में साहित्यप्रेम, वीरता, दानशीलता, धर्म तथा राजनीति का अपूर्व समन्वय है ।
११. वही, ६.८१