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सोमसौभाग्य : प्रतिष्ठासोम
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fक चित्रमस्य तु गिरा सुकुमारयापि श्राक् भिद्यते दृषदिह ध्रुवमेकशोऽपि ॥
उपर्युक्त अलंकारों के अतिरिक्त सोमसौभाग्य में रूपक, व्यतिरेक, सहोक्ति यथासंख्य, भ्रान्तिमान्, संदेह आदि भी अभिव्यक्ति के माध्यम बने हैं ।
छन्दयोजना
सोमसौभाग्य के प्रत्येक सर्ग में एक छन्द की प्रधानता है । सर्गान्त में छन्द बदल जाता है । प्रथम दो सर्गों का मुख्य छन्द क्रमशः वसन्ततिलका तथा अनुष्टुप् है । दोनों का अन्तिम पद्य शार्दूलविक्रीडित में है । तृतीय तथा चतुर्थ सर्ग में उप
की प्रधानता है। तृतीय सर्ग के अन्त में वसन्ततिलका, शिखरिणी तथा शार्दूलविक्रीडित छन्द प्रयुक्त हुए हैं । चतुर्थ सर्ग की उपजाति में इन्द्रवंशा तथा वंशस्थ का मिश्रण है । सर्गान्त के तीन पद्य वसन्ततिलका तथा शार्दूलविक्रीडित में हैं । पाँचवें तथा सातवें सर्ग में वसन्ततिलका और शार्दूलविक्रीडित का प्रयोग किया गया है । छठे तथा आठवें दोनों सर्गों में प्रधानतः उपजाति को स्थान मिला है । सर्ग के अन्त में शार्दूलविक्रीडित को अपनाया गया है। नवें सर्ग की रचना आर्या में हुई है । अन्त के छह पद्य शार्दूलविक्रीडित में निबद्ध हैं । दसवें सर्ग में वसन्ततिलका, मालिनी तथा शार्दूलविक्रीडित इन तीन छन्दों को रचना का आधार बनाया गया है । कुल मिला कर सोमसौभाग्य में छह छन्द प्रयुक्त हुए हैं। इनमें उपजाति की प्रधानता है । तत्पश्चात् वसन्ततिलका का स्थान है । सोमसौभाग्य में समाजचित्रण
सोमसौभाग्य का साहित्यिक मूल्य कुछ भी हो, इसमें तत्कालीन समाज के कतिपय पक्षों का विशद चित्रण हुआ है । आजकल की भाँति उस समय भी पुत्रजन्म अपूर्व हर्षोल्लास का अवसर था तथा नाना आमोद-प्रमोद एवं नृत्य-गायन से उसका अभिनन्दन किया जाता था। माता-पिता को पुत्रजन्म की बधाई देने वाले व्यक्तियों को अक्षत चावल भेंट किये जाते थे। पिता प्रसन्नतावश अन्य नानाविध दान देता था । स्त्रियाँ सजधज कर मंगल गीत गाती थीं । इस शुभ अवसर पर धनवानों के घरों में मोतियों से शुभ स्वस्तिक चिह्न बनाने की प्रथा थी । आम के पत्तों से मांगलिक तोरण बनाए जाते थे । पेशेवर गायक सरस गीत गाया करते थे तथा वेश्याएँ नृत्य करती थीं । दीक्षाग्रहण, पदप्रतिष्ठा आदि के अन्य प्रसंगों में पण्यांगनाओं के नृत्य का उल्लेख काव्य में किया गया है । सम्भवतः समाज में उनके कर्म के विपरीत उनका नृत्यकौशल गर्हित नहीं माना जाता था । जिनालयों में इस अवसर पर विशेष पूजा की जाती थी तथा विविध उत्सवों का आयोजन किया जाता था । "
जन्म के बारहवें दिन शिशु का नामकरण किया जाता था ।१२ उच्चवर्ग भाव११. वही, २०१३-१६ १२ . वही, २.२१