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सोमसौभाग्य : प्रतिष्ठासोम
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पाठशाला में अध्ययन का प्रारम्भ स्वभावतः वर्णमाला से किया जाता था। वर्णज्ञान से पूर्व ॐ का उच्चारण मांगलिक माना जाता था। तत्कालीन पाठ्यक्रम में धर्मसूत्र, व्याकरण, छन्दशास्त्र, लिंगानुशासन, नाममाला, शारीरिक धातुओं का ज्ञान, अंकगणित तथा गायनकला निर्धारित थी। यह लेखशाला का पाठ्यक्रम था । दीक्षित होने के पश्चात् मुनि सोमसुन्दर ने दशवैकालिक सूत्र तथा नंदिसूत्र, इन जैन शास्त्रों के अतिरिक्त शब्दशास्त्र, साहित्य, छन्द, तत्त्वज्ञान, तर्क, अलंकार तथा उपनिषदों का विधिवत् अभ्यास किया था। ये विषय यद्यपि दीक्षित साधु के लिये निश्चित थे किन्तु इन्हें सामान्यत: तत्कालीन पाठ्यक्रम माना जा सकता है । इस प्रकार पन्द्रहवीं शताब्दी में छात्र के बौद्धिक विकास के लिये बहुमुखी पाठ्यक्रम निर्धारित था। सोमसौभाग्य में 'काव्यप्रकाश' के अध्यापन का उल्लेख (१०.६) साहित्यशास्त्र, विशेषत: मम्मट के ग्रन्थ के प्रचलन तथा महत्त्व का सूचक है । अध्ययन के लिये तीव्र स्मरणशक्ति का महत्त्व निर्विवाद है। सोम ने स्मरणशक्ति के कारण ही, अल्पायु में, शास्त्रसागर को पार कर लिया था।
सोमसौभाग्य में कतिपय वस्त्रों तथा आभूषणों की चर्चा हुई है। पद-प्रतिष्ठा के समय प्रभावना आदि के अतिरिक्त आचार्य तथा संघ की परिधापनिका की जाती थी, जिसमें समूचे संघ को बहुमूल्य वस्त्र भेंट किये जाते थे । भुवनसुन्दर वाचक की सूरिपद पर प्रतिष्ठा के अवसर पर विदेशी वस्त्र दिये जाने का उल्लेख काव्य में हुआ है । प्रचलित आषभूणों में हार, अर्धहार, मुकुट, कुण्डल, केयूर, वीरवलय, मणि, मुद्रिका तथा कर्गचूल सम्मिलित थे।
प्रतिष्ठासोम के समसामयिक समाज का शकुनों तथा मुहूर्तों पर दृढ़ विश्वास था। सभी कार्य मोहूर्तिकों द्वारा निश्चित शुभ दिन अथवा लग्न में किए जाते थे। कुछ जैनाचार्य भी ज्योतिर्विद्या के पारंगत आचार्य थे। धार्मिक अनुष्ठान उन्हीं की सम्मति से शुभ समय पर सम्पन्न होते थे । सज्जन ने जिस दिन अपने पुत्र को पाटशाला में प्रविष्ट कराया था, वह ज्योतिषी द्वारा निर्धारित किया गया था। मांगलिक मुहूर्त आदि के प्रति समाज की इस आस्था के कारण स्वभावतः ज्योतिषियों को सम्मानित पद प्राप्त था। शुभाशुभ शकुनों के विचार का इतिहास भी बहुत प्राचीन है। सोमसौभाग्य में सधवा स्त्री का जलपूर्ण घट लेकर सामने आना, सुभूषित पण्यांगना का दीखना तथा खर, शण्ड और अश्व का बायीं ओर शब्द करना शुभ शकुन २२. ॐकारमातृकापाठप्रारम्भं समकारयत् । वही, २.६० २३. वही, २.६४-७० २४. ५.६. ११-१२,४६ २५. वही २.६८ २६. वही, ८.१२ २७. वही, ५.५५, ७.६७