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जैन संस्कृत महाकाव्य
माने गए हैं । " श्रेष्ठी गुणराज के ससंघ यात्रा के लिए प्रस्थान करते समय ये सभी उत्साहवर्द्धक शकुन हुए थे ।
धर्म
सोमसौभाग्य यद्यपि जैन धार्मिक इतिहास से सम्बन्धित रचना है किन्तु इसमें जैन दर्शन अथवा धर्म के गूढ़ तत्त्वों का विवेचन नहीं हुआ है । जयानन्दसूरि की देशना में जैन धर्म की सामान्य चर्चा है। आर्हत धर्म के अन्तर्गत श्रमणों तथा श्रावकों के लिए पृथक् आचारों का विधान था । औपासिक धर्म से तो क्रम से ही मुक्ति प्राप्त होती है किन्तु यतिधर्म व्रतधारियों को इसी लोक है । जैन समाज में, आजकल की भाँति, उस समय भी दीक्षा को मोक्ष का द्वार माना जाता था । समाज को विश्वास था कि दीक्षा कल्पवल्ली के समान मानव की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती है । "
में मोक्ष प्रदान करता
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सोमसौभाग्य में अन्य महत्त्वपूर्ण संकेत
प्रतिष्ठा सोम के काव्य में प्रसंगवश प्राचीन इतिहास के कतिपय प्रतापी सम्राटों, मन्त्रियों, जैनाचार्यों तथा कवियों एवं विद्वानों का उल्लेख किया गया है । गुजरात-नरेश कुमारपाल तथा महामात्य वस्तुपाल जैन धर्म के अद्वितीय प्रभावक तथा साहित्य-पोषक थे । वस्तुपाल को काव्य में सबसे अधिक — तीन बार - स्मरण किया गया है । वस्तुपाल देवेन्द्रसूरि की वाक्कला से इतने अभिभूत थे कि व्याख्यान सुनते समय उनका सिर झूमने लगता था ।" रैवतक पर स्थित उनके 'प्रासाद' का जीर्णोद्धार अहमदाबाद के धनाढ्य व्यापारी समरसिंह ने किया था ।" कुमारपाल का प्रथम उल्लेख उनके तारणगिरि के विहार के जीर्णोद्धार के प्रसंग में हुआ है । प्रतिष्ठासोम ने लक्ष्मी की अस्थिरता को नव नन्दों, विक्रम, नल, मुंज, भोज तथा हाल — इन इतिहास - प्रसिद्ध सम्राटों के नामशेष वैभव के उदाहरण से रेखांकित किया है ।" गुणराज की उदारता तथा दानशीलता की तुलना राजा सम्प्रति के अतिरिक्त कुमारपाल तथा वस्तुपाल के साथ की गयी है । " मेवाड़ - नरेश कुम्भकर्ण ( राणा कुम्भा ) गुरु सोमदेव की काव्यकला के प्रबल समर्थक थे । २५ जैन धर्म के महापुरुषों तथा २८. वही, ८.३३-३५
२६. वही, ४.१३-१४
३०. वही, ३.२८
३९. वही, ६.७७
३२. वही, ७.१०-११
३३. वही, ६.२६-२७
३४. वही, ८.४६-५० ३५. वही, १०.३८