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सुमितसम्भव : सर्वविजयगणि
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५० हाथी, १०० ऊँट, ५० खच्चर, २,०००,००० टंक। इन अंकों से प्राचीन माण्डू के 'व्यवहारिशिरोरत्न' की समृद्धि का अन्दाज़ किया जा सकता है ।
सातवें व्रत के अनुसार, जो दैनिक खपत तथा प्रयोग की वस्तुओं की संख्या और परिमाण को सीमित करता है, उसने प्रतिदिन अधिकाधिक इन वस्तुओं का प्रयोग करने का प्रण किया-चार सेर घी, पांच सेर अनाज, पेय जल के पांच सौ घड़े, सौ प्रकार की सब्जियाँ, संख्या में पांच सौ तथा तौल में एक मन फल, चार सेर सुपारी, २०० पान, एक लाख मूल्य के आभूषण, सौ टंक कीमत के प्रसाधन, एक मन फूल, स्नानीय जल के आठ कलश, परिधान के सात जोड़े तथा इसी प्रकार सीमित अन्य वस्तुएँ, जिनकी सूची बहुत लम्बी है।
__अपनी धर्मनिष्ठा के अनुरूप जावड़ ने सम्वत् १५४७ में, माण्डू में जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा कराई। इनका अभिषेक उसके गुरु, आचार्य सुमतिसाधु ने किया था। वे प्रतिमाएँ संख्या में १०४ थीं-अतीत के २४ तीर्थंकरों की एक-एक, भविष्य के २४ तीर्थंकरों की एक-एक, वर्तमान २४ तीर्थंकरों की एक-एक, २० विहरमाण तीर्थंकरों की एक-एक, उक्त प्रति २४ तीर्थंकरों के तीन सामूहिक मूर्तिपट्ट, बीस विहरमाण तीर्थंकरों का एक सामूहिक मूर्तिपट्ट तथा ६ पंचतीथियाँ । २३ सेर की एक चाँदी की मूर्ति तथा ११ सेर की एक स्वर्ण-प्रतिमा को छोड़कर शेष सभी मूर्तियाँ पीतल की बनी हुई थीं। उन्हें मणि-खचित छत्रों तथा बहुमूल्य आभूषणों से सजाया गया था। मूर्ति स्थापना के उपलक्ष्य में आयोजित उत्सवों, जावड़ द्वारा दिये गये उपहारों तथा भारत के कोने-कोने से आए हुए संघों का भी सूक्ष्म वर्णन काव्य में किया गया है।
इससे महेभ्य जावड़ की सम्पन्नता, उदारता, संयम, सामाजिक सम्मान तथा धर्मपरायणता की कल्पना सहज ही की जा सकती है।
अपनी परिसीमाओं में सुमतिसम्भव अच्छा काव्य है। इस श्रेणी के काव्यों में किसी व्यापक जीवन-दर्शन अथवा उदात्त कवित्व की आशा नहीं की जा सकती। फिर भी, सर्वविजय साहित्य को ऐसा काव्य देने में समर्थ हुआ है, जो कवित्व की दृष्टि से उपेक्षणीय नहीं है । जावड़ के इतिहास की तो यह अमूल्य निधि है। १५. सुमतिसम्भव ७.४०-४६ १६. वही, ७.४६-५७ १७. वही, ८.३-२४ १८. जावड़ का इतिहास प्रस्तुत करने में हमें मध्यप्रदेश इतिहास-परिषद्' की
पत्रिका, अंक ४, १९६२, पृ० १३१-१४४ में प्रकाशित डॉ० क्राउझे के उत्तम निबन्ध 'जावड़ ऑफ माण्डू' से पर्याप्त सहायता मिली है । इसके लिए हम उनके आभारी हैं।