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वस्तुपालचरित : जिन हर्षगणि
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स्थ, वियोगिनी, मालिनी, तथा उपजाति ( इन्द्रवंशा + वंशस्थ ) । द्वितीय तथा तृतीय प्रस्ताव में नौ-नौ छन्द रचना के माध्यम बने हैं । द्वितीय प्रस्ताव के छन्दों के नाम हैं— अनुष्टुप् उपजाति, शिखरिणी, शार्दूलविक्रीडित, पृथ्वी, मालिनी, स्रग्धरा स्वागता, वसन्ततिलका । द्वितीय प्रस्ताव के शिखरिणी, पृथ्वी तथा मालिनी का स्थान तृतीय प्रस्ताव में आर्या, वंशस्थ तथा इन्द्रवज्रा ने ले लिया है । शेष छन्द दोनों में समान हैं। चतुर्थ प्रस्ताव में अनुष्टुप् वियोगिनी, शार्दूलविक्रीडित, वसन्ततिलका, मन्दाक्रान्ता, उपजाति, आर्या, स्रग्धरा, इन्द्रवज्रा तथा हरिणी, इन दस छन्दों को अपनाया गया है । पाँचवाँ प्रस्ताव ग्यारह छन्दों में निबद्ध है । इसमें पूर्व प्रयुक्त छन्दों से कोई नया छन्द दृष्टिगत नहीं होता । छठे प्रस्ताव में सबसे अधिक, अठारह, छन्द प्रयुक्त हैं। उनके नाम इस प्रकार है— अनुष्टुप् उपजाति, शार्दूलविक्रीडित, इन्द्रवज्रा, मालिनी, वसन्ततिलका, मन्दाक्रान्ता, स्वागता, इन्द्रवंशा, स्रग्धरा, पृथ्वी, आर्या, शिखरिणी, रथोद्धता, उपजाति (इन्द्रवंशा + वंशस्थ + इन्द्रवज्रा ) । तीन छन्दों (३१६,६६०, ६६४अ) के नाम ज्ञात नहीं हो सके हैं। सातवें प्रस्ताव में जिन नौ छन्दों का प्रयोग किया गया है, वे अनुष्टुप के अतिरिक्त हैं - शार्दूलविक्रीडित, उपजाति, उपेन्द्रवज्रा, स्रग्धरा, वसन्ततिलका, स्वागता, इन्द्रवज्रा तथा मालिनी । अष्टम प्रस्ताव में अनुष्टुप् शार्दूलविक्रीडित, उपजाति, आर्या, द्रुतविलम्बित, मालिनी, स्रग्धरा, वसन्ततिलका, रथोद्धता और इन्द्रवज्रा छन्द प्रयुक्त हैं । वस्तुपालचरित की रचना में सब मिला कर चौबीस छन्दों का प्रयोग किया गया है ।
वस्तुपालचरित का इतिहास-पक्ष
वस्तुपालचरित का काव्यगत मूल्य भले ही अधिक न हो, इसमें काव्यनायक सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण प्रामाणिक सामग्री समाहित है । बहुमुखी उपलब्धियों तथा दुर्लभ मानवीय गुणों के कारण महामात्य वस्तुपाल का व्यक्तित्व मध्यकालीन भारतीय इतिहास के मंच पर सबसे अलग दिखाई देता है । अनेक समवर्ती तथा परवर्ती कवियों ने उसकी प्रशासनिक निपुणता, काव्य- रसिकता, असीम उदारता तथा रणकौशल का गौरवगान किया है। वस्तुपालचरित की रचना में इन समूची पूर्ववर्ती कृतियों का उपयोग किया गया है ( ८.६७४), जिसके फलस्वरूप इसका ऐतिहासिक अंश स्पष्ट तथा प्रमाणपुष्ट है ।
वस्तुपाल अणहिलवाड़ के धनाढ्य प्राग्वाट वंश का भूषण था । काव्य में उल्लिखित उसका आदि पूर्वज, चण्डप, चौलुक्यनरेश का मन्त्री था । उसके पुत्र चण्डप्रसाद का हाथ राजमुद्रा से कभी खाली नहीं रहता था । रत्नों के पारखी, उसके पुत्र सोम को, सिद्धराज जयसिंह ने अपना रत्नाध्यक्ष नियुक्त किया था । वस्तुपाल का पिता अश्वराज इसी सोम का पुत्र था। अपने पूर्वजों की भाँति अश्वराज भी चौलुक्यनरेश का मन्त्री था । वस्तुपाल की माता कुमारदेवी, प्राग्वाटवंशीय वणिक्,