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जैन संस्कृत महाकाव्य
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मरस से परिपूर्ण उसके हृदय में जिनधर्म उसी प्रकार विहार करता है जैसे मानसरोवर में हंस' । अपनी धर्मनिष्ठा के कारण वह मुनिजनों की देशनाएँ सुनता है । शत्रुंजय आदि तीर्थों की यात्रा से उसने आर्हत धर्म को ऐसे दीप्त कर दिया जैसे गगन को सूर्य ।
सज्जन गुणों का पुंज है । औदार्य, धैर्य, शौर्य, गाम्भीर्य आदि गुण उसमें आकर ऐसे बस गये मानो अन्यत्र उनके लिये कोई स्थान न हो। वह शैशव से ही मिथ्यात्व आदि दूषणों से मुक्त है । सम्यक्त्व उसकी बहुमूल्य निधि है । उसकी दानशीलता से कल्पवृक्ष भी लज्जित हो जाते हैं । याचक-जनों के प्रति उसकी उदारता के कारण उसकी कीर्ति दिग्दिगन्त में व्याप्त हो गयी है । "
सज्जन पुत्रवत्सल पिता है । पुत्रजन्म का समाचार सुनकर वह आनन्द से झूम उठता है । इसके उपलक्ष्य में वह प्रीतिभोज का ठाटदार आयोजन करता है तथा याचकों को मुक्तहस्त से दान देता है । इसी पुत्रप्रेम के कारण वह सोम को श्रामण्य की दुर्वहता का आभास देकर, प्रव्रज्या ग्रहण करने से रोकने का प्रयत्न करता है ।
माल्हणदेवी सज्जन की पत्नी है । वह परम सुन्दरी तथा गुणों से सम्पन्न है | उसमें सीता, दमयन्ती, सुलसा, अंजना आदि प्राचीन इतिहास की गौरवशाली नारियों गुणों का समन्वय है । उसके अनवद्य सौन्दर्य के सामने देवांगनाएँ तथा विद्याधरियाँ भी निष्प्रभ हैं । अपने विविध गुणों के कारण वह पति को इस प्रकार प्रिय है जैसे मुमुक्षु को मुक्ति । इन्द्र तथा शची की भाँति उनका दाम्पत्य जीवन सुखमय तथा प्रेमपूर्ण है ।
सोमसुन्दर काव्य का नायक है । वह चन्द्रमा (सोम) की तरह सुन्दर है । उसका जन्म यद्यपि वैभवशाली परिवार में हुआ था किन्तु उसे सांसारिक आकर्षणों तथा विषयों में कोई रुचि नहीं है । मुनि जयानन्द की देशना के जल से सिक्त होकर उसमें वैराग्य का अंकुर फूट पड़ता है । फलतः वह सात वर्ष की अल्पावस्था में ही चारित्रयव्रत ग्रहण कर लेता है । क्रमशः सूरिपद प्राप्त करके वे ४२ वर्ष तक गच्छ का कुशल नेतृत्व करते हैं । सोमसुन्दर अद्भुत प्रतिभाशाली हैं। उनकी प्रतिभा का अनुमान इस तथ्य से किया जा सकता है कि लेखशाला में तथा दीक्षा - प्राप्ति के पश्चात् गुरु के सान्निध्य में रहकर वे अविलम्ब विविध शास्त्रों में सिद्धहस्तता प्राप्त कर लेते हैं । सोमसुन्दर के जीवन की कहानी आर्हत धर्म के उत्थान की गौरवपूर्ण
३. वही, १.४१-४३
४. वही, १.४६
५. वही, १.४५ ६. वही, १.६२-६३