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सोमसौभाग्य : प्रतिष्ठासोम
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हर्ष की भाँति उसने अनियन्त्रित तथा अनावश्यक वर्णनों से मूल कथा को अवरुद्ध नहीं किया है। कालिदास की तरह वह पाठक की मनःस्थिति से परिचित है। इससे पूर्व कि पाठक का धीरज छूटे वह कथासूत्र को पकड़ कर आगे बढा देता है । इसी लिए धार्मिक इतिहास से सम्बन्धित होते हुए भी इस काव्य में रोचकता का अभाव नहीं है । कथानक को गतिमान् रखने के प्रति कवि की सजगता का यह स्पष्ट प्रमाण है कि आठवें सर्ग में शत्रुजयमाहात्म्य का अवकाश होते हुए भी उसने उसका संकेत करके ही संतोष कर लिया है । कठिनाई यह है कि सोमसौभाग्य महाकाव्य के लिए आवश्यक विविधता से शून्य है। इसके अधिकांश सर्गों में धार्मिक कार्यों के एक समान वर्णन हैं जिन्हें कवि ने विभिन्न शब्दावली में प्रस्तुत किया है । इसलिए सोमसौभाग्य के ये सर्ग प्रबन्ध से विच्छिन्न स्वतन्त्र काव्यखण्ड प्रतीत होते हैं। कवि ने इन्हें आचार्य सोमसुन्दर के गौरवशाली व्यक्तित्व के सूत्र में बांध कर समन्वित करने का प्रयत्न किया है। समीक्षा
सोमसौभाग्य के धार्मिक परिवेश में काव्यधर्मों का अधिक महत्त्व नहीं है। प्रकृतिचित्रण के नाम पर समूचे काव्य में समेला-तटाक का वर्णन है, जिसकी स्वाभाविकता उल्लेखनीय है (६.७-६) । अज्ञातनामा नगर के वर्णन में स्वाभाविक तथा अलंकृत शैलियों का सम्मिश्रण है (६.१४-१६) । सोमसौभाग्य में शारीरिक सौन्दर्य का चित्रण अधिक तत्परता से किया गया है यद्यपि इसमें परम्परागत पद्धति से कोई नवीनता दिखाई नहीं देती। काव्यनायक की माता का सौन्दर्य व्यतिरेक द्वारा चित्रित किया गया है (१।५६-६१) । कुमार के चित्रण में नखशिखविधि का आश्रय लिया गया है।
रसात्मकता की दृष्टि से सोमसौभाग्य को सफल नहीं कहा जा सकता। इसमें किसी शास्त्रविहित रस का, अंगी रस के रूप में, परिपाक नहीं हुआ है। वैराग्य, विषयत्याग आदि के अधिक महत्त्व के कारण एक-दो स्थानों पर शान्तरस की व्यंजना हुई है। शिशु सोम की बालकेलियों में वात्सल्य रस की मधुरता है (३.४४) । चरितचित्रण
सोमसौभाग्य में असंख्य पात्र हैं। उनमें से कुछ का तो काव्य में उल्लेख मात्र हुआ है, कुछ की विशेषताओं का संकेत मात्र किया गया है, कुछ अन्य के चरित्र का विकास नहीं हो सका है । सज्जन, माल्हणदेवी तथा काव्यनायक सोमसुन्दर के चरित्र भी अधिक स्पष्ट नहीं हैं।
सज्जन प्रह्लादनपुर का धनवान् व्यापारी है । वह धर्मपरायण व्यक्ति है।