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जैन संस्कृत महाकाव्य
दण्डपति आभू की पुत्री थी । इस प्रकार वस्तुपाल के कुल का चौलुक्यशासकों से पुराना सम्बन्ध था। जिनहर्ष के इस विवरण की कीतिकौमुदी से अक्षरशः पुष्टि होती है ।
अणहिलवाड़ के प्रथम शासक (चापोत्कट-चावड़ा) कुल के नरेशों की वंशावली भी प्रथम प्रस्ताव में उपलब्ध है, जिसके अन्तर्गत वनराज से लेकर सामन्तसिंह तक सात शासकों का सामान्य वर्णन है । काव्य के अनुसार वनराज ने वि० सम्वत् ८०२ में अणहिलवाड़ की स्थापना की थी। उसने साठ वर्ष तक शासन किया । अरिसिंहकृत सुकृत-संकीर्तन में दी गयी वंशावली तथा उपर्युक्त अनुक्रम में पर्याप्त भिन्नता है । यद्यपि सुकृतसंकीर्तन वस्तुपाल की समकालीन रचना है, पर उसकी वंशावली अधिक विश्वसनीय है, यह कहना सम्भव नहीं क्योंकि चावड़ावंश के नरेशों के शासन का अनुक्रम अभी तक निश्चित नहीं है ।
चावड़ावंश के अन्तिम शासक सामन्तसिंह की बहिन लीलादेवी कान्यकुब्जेश्वर राज से विवाहित थी। उनके पुत्र मूलराज से चौलुक्यवंश का प्रवर्तन होता है। मूलराज ने अणहिलवाड़ के सिंहासन पर कैसे अधिकार किया, इसका उल्लेख काव्य में नहीं है । चौलुक्यनरेशों की, काव्य में दी गयी वंशावली प्रायः शुद्ध है। भीमराज तथा अर्णोराज के मध्यवर्ती शासकों को, सम्भवतः महत्त्वहीन समझ कर छोड़ दिया गया है। प्रतीत होता है कवि ने इस वंशावली का निर्धारण करने में पूर्ववर्ती समस्त साधनों का उपयोग किया था । इसलिये यह अशुद्धियों से मुक्त है ।
___ वस्तुपालचरित के अनुसार वीरधवल ने राजपुरोहित सोमेश्वर से वस्तुपाल तथा तेजःपाल का परिचय पाकर उन्हें अपना मन्त्री नियुक्त किया था। कीतिकौमुदी, वसन्तविलास, प्रबन्धचिन्तामणि तथा प्रबन्धकोश में भी ऐसा वर्णन है, किन्तु वस्तुपाल के स्वरचित नरनारायणानन्द से ज्ञात होता है कि वह पहले भीमराज द्वितीय की सेना में था । धौलका-नरेश वीरधवल को उसकी सेवाएँ कालान्तर में प्राप्त हुई थीं। धौलका के राजदरबार में वस्तुपाल की महामात्य पद पर नियुक्ति १२२० ई० में की गयी थी।
१२. वही, १.२२-६५. १३. कोत्तिकौमुदी, ३.६-२२ १४. वस्तुपालचरित, १.१५८-१६१ १५. भोगीलाल सांडेसरा : लिट्रेरी सर्कल ऑफ महामात्य वस्तुपाल, पृ० ६५ तथा
इसी पृष्ठ पर पा० टि० १ १६. वस्तुपालचरित, १.२३१-४२ १७. लिट्रेरी सकल ऑफ महामात्य वस्तुपाल (पूर्वोक्त), पृ० २८