________________
हम्मीर महाकाव्य : नयचन्द्रसूरि
२६७
स्था
सपना बुद्धिपूर्ण नहीं है । कर्मचारियों की नियुक्ति के संबंध में सम्रचन्द्र की है कि अपने से अधिक कुलीन व्यक्ति को : अनुजीवी नियुक्त करना सजा के लिये निरापद नहीं है । वह शक्ति संचित करके वह वृक्ष की भाँति राज्य के आसाद को नष्ट कर देता है" ।
-
कर (टैक्स) राज्य की आर्थिक सुरक्षा तथा सम्पन्नता का मुख्य आधार है । कर व्यवस्था का न्यायोचित तथा विवेक सम्मत होना अनिवार्य है अन्यथा वह गम्भीर असंतोष को जन्म देती है । प्रजा से इस प्रकार कर लेना चाहिये कि उसे पीड़ा न हो" । प्रजा को पीड़ित करके कोश को करों से भरना, अपने ही मांस से शरीर का पोषण करने के समान निकृष्ट कर्म है" । उचित कर प्रणाली से प्रजा सन्तुष्ट रहती है और राज्य का अभ्युदय होता है" । प्रजापीडन के समान कुल-विरोध भी राजा के लिये त्याज्य है । प्रजापीडन और कुल विरोध चक्की के दो पाट हैं, जिनमें फंस कर राज्य धान की तरह चूर-चूर हो जाता है" ।
- नयचन्द्र द्वारा प्रतिपादित राजनीति का सार सम्भवतः यह है—
पराभवन् द्विषच्चक्रं प्रभवन् न्यायवृद्धये ।
सौख्यं चानुभवन् स्फीतं स प्रजाश्चिरमन्वशात् ॥ ४.३१
शत्रु की पराजय तथा न्यायपूर्ण शासन, इन्हीं पर प्रजा का सुख तथा राज्य "की समृद्धि आधारित है ।
1
नयचन्द्रसूरि सफल इतिहासकार भी हैं । हम्मीरमहाकाव्य में उन्होंने हम्मीर तथा उसके पूर्वजों का इतिहास प्रस्तुत किया है, वह उनकी इतिहास- प्रवीणता का परिचायक है । प्रारम्भिक शासकों के वर्णन में कुछ त्रुटियां हैं । सम्भवतः नयचन्द्र को उनके इतिहास के प्रामाणिक स्रोत प्राप्त नहीं हो सके थे । किन्तु हम्मीर का विवरण लगभग पूर्णतया विश्वसनीय तथा तथ्यपूर्ण है । वस्तुतः हम्मीरमहाकाव्य संस्कृत का एकमात्र ऐसा काव्य है जिसे न्यायपूर्वक इतिहास ग्रंथ कहा जा सकता है । हम्मीरकाव्य के ऐतिहासिक वृत्त के सत्यासत्य का परीक्षण आगे यथास्थान किया जाएगा। इतिहास तथा राजनीति के अतिरिक्त नयचन्द्र कामशास्त्र के भी समर्थ विद्वान् हैं । उनमें कालिदास की रसिकता का अभाव है पर मात्र की तरह वे 'स्मरकलाविदुर' - कामकला के प्रोढ पण्डित हैं । पंचम तथा षष्ठ सर्ग में क्रमशः वनविहार और २२. वही, ८.६२-६५
२३. वही, ८.८७
२४. प्रजादण्डेन यत् तेन प्रतेने कोशवर्द्धनम् ।
तत्कि स्वस्यैव मांसेन न स्वदेहोपबर्हणम् ॥। वही, ८.१७०
. २५. बही, ४.१
२६. वही, ८.९१.