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जैन संस्कृत महाकाव्य
तोबा-तोबा करने लगते हैं । वस्तुपाल मोजदीन के मित्र पूर्णसिंह को राजधानी में बुलाकर उसे सम्मानित करता है तथा उसके साथ तीर्थयात्रा करता है। तेजःपाल संघसहित भृगुकच्छ की यात्रा पर जाता है । मोजदीन की माता हज के लिये जाती हुई खम्भात आयी। वस्तुपाल की शह से उसके अनुचर उसे लूट लेते हैं। उसके शिकायत करने पर वस्तुपाल उसका सारा धन वापिस करवा देता है तथा उसका माता के समान सत्कार करता है । वह महामात्य के व्यवहार से इतनी प्रसन्न हुई कि वापिस जाते समय वह उसे अपने साथ दिल्ली ले गयी। मोजदीन ने वस्तुपाल का भव्य स्वागत किया। आठवें प्रस्ताव में अर्बुदगिरि का माहात्म्य सुनकर वस्तुपाल उसके शिखर पर नेमिनाथ का मन्दिर बनवाता है। पिता वीरधवल द्वारा निर्वासित करने पर वीरम ने अपने श्वसुर, जाबालिदुर्ग के स्वामी उदयसिंह की शरण ली किन्तु उसकी दुर्नीति से तंग होकर उदयसिंह ने उसकी हत्या करवा दी। वीरधवल के पश्चात् उसका पुत्र विश्वल सिंहासन पर बैठा । वस्तुपाल अपने अनुज तथा पुत्र को प्रशासन का भार सौंप कर शत्रुजय की यात्रा के लिये गया पर मार्ग में, कापालिक ग्राम में, उसका निधन हो गया। तेजःपाल ने शत्रुजय पर उसकी अन्त्येष्टि की और उसकी स्मृति में स्वर्गारोह नामक चैत्य बनवाया। तेज:पाल शंखेश्वर की यात्रा के मार्ग में दिवंगत हो गया।
धर्मोपदेशों, माहात्म्यों, चैत्यनिर्माण आदि धार्मिक अनुष्ठानों के गोरखधन्धे से निकाल कर वस्तुपालचरित का मूलभूत कथानक यहाँ प्रस्तुत किया गया है। इससे यह भ्रम नहीं होना चाहिये कि काव्य में मूल कथानक इतना स्पष्ट तथा सुसम्बद्ध है । वस्तुतः जैसा ऊपर-ऊपर कहा गया है, काव्य की कथावस्तु विषयान्तरों की भारी पर्तों में दबी पड़ी है और उसका पुननिर्माण करना अतीव कष्टसाध्य कार्य है । जिनहर्ष का कथानक अस्तव्यस्त तथा विशृंखलित है। विषयान्तरों ने कथानक को नष्ट कर दिया है । वस्तुपाल का कर्ता पाठक से जिस धैर्य की आकांक्षा करता है, वह आधुनिक पाठक में नहीं है। वास्तव में कवि का ध्यान कथानक के विनियोग की ओर नहीं है । वह धर्मानुष्ठानों के वर्णनों में आकण्ठ डूबा हुआ है। धर्म तथा दर्शन
जिनहर्ष का मुख्य (वस्तुतः एकमात्र) लक्ष्य काव्य के द्वारा आर्हत धर्म की प्रभावना करना है । इस तथाकथित ऐतिहासिक काव्य में धर्मोपदेशों की अबाध योजना करना कवि की प्रचारवादी वृत्ति का द्योतक है । इन धर्म देशनाओं में कहींकहीं जैन धर्म तथा दर्शन के कुछ तत्त्वों का निरूपण हुआ है। इस दृष्टि से पंचम प्रस्ताव विशेष उल्लेखनीय है । इसमें कवि का दार्शनिक स्वर अधिक मुखर है।