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हम्मीर महाकाव्य : नयचन्द्रसूरि
दुर्व्यवहार से क्रुद्ध खण्डिता नायिका । सूर्य के उदित होने से पूर्व दिशा में जो लालिमा छिटकी है, वह उस खण्डिता के क्रोध की ज्वाला है ।
अवाप यस्यामुदयं विहाय तां मामथासावपरां सिषेवे । इत्यादधानेव रुषं हिमांशौ पुरन्दराशारुणतां जगाम ॥ ८.१८
वर्षावर्णन में भी प्रकृति मानव-सुलभ आचरण करती दिखाई देती है । प्रस्तुत पद्य में मेघनायक है और पृथ्वी नायिका । मेघागम से हरी-भरी ( प्रसन्न ) पृथ्वी - कामिनी ने प्रिय को रिझाने के लिये कंचुकी धारण कर ली है ।
सान्द्रोद्गमोल्लसन्नीलतृणश्रेणिच्छलात् क्षितिः ।
मेघप्रियागमप्रीता पर्यधादिव कंचुकम् ॥ १३.५५
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पूर्वोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि हम्मीरमहाकाव्य का प्रकृति-चित्रण वक्रोक्ति की भित्ति पर आधारित है और उसमें स्वाभाविकता की कमी है, किन्तु उसका निजी सौन्दर्य है जो पाठक को बरबस आकर्षित करता है ।
चरित्र-चित्रण
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हम्मीर महाकाव्य चरित्रों की विशाल चित्रशाला है, जिसमें चित्रपट के विविध दृश्यों की तरह अतुल शौर्य, आत्मबलिदान, शरणागतवत्सलता, अविचल स्वामिभक्ति, देशद्रोह, धूर्तता, कृतघ्नता, अवसरवादिता, कूटनीतिक दारिद्र्य आदि के नाना मनमोहक चित्र दृष्टिगोचर होते हैं । कवि की तूलिका का स्पर्श पाकर ये सभी चित्र मुखर हो उठे हैं, किन्तु उसकी तूलिका की सच्ची विभूति वीरवर हम्मीर के चित्र को मिली है | हम्मीरकाव्य के पात्रचित्रण की विशेषता यह है कि वह पूर्णतया यथार्थ है । इसीलिये प्रत्येक पात्र का अपना स्वतन्त्र व्यक्तित्व है । नयचन्द्र ने अपने पात्रों के चारित्रिक गुणों का सहानुभूति से अंकन किया है, किन्तु उनके दोषों को निर्ममतापूर्व उघाड़ने में भी उसने संकोच नहीं किया है । काव्यनायक के दुर्गुणों पर भी उसने कड़ा प्रहार किया है ।
हम्मीर
काव्यनायक हम्मीर का व्यक्तित्व विरोधी गुणों का विशाल पुंज है । वह शस्त्र तथा शास्त्र का मर्मज्ञ है । प्रजारंजन उसके चरित्र की विशेषता है । उसमें अर्जुन का शौर्य, कर्ण की दानशीलता तथा राम की नीतिमत्ता एक-साथ वर्तमान हैं । राज्य के वास्तविक अधिकारी को छोड़कर उसे अभिषिक्त करने के पिता के प्रस्ताव को वह नीति-विरोधी समझ कर ठुकरा देता है। वह पितृवत्सल पुत्र है । जीमूतवाहन की भाँति वह राज्यभोग की अपेक्षा पितृसेवा को अधिक सुखद समझता है" ।
४२. वही, ८.६७ ४३. वही, ८.५१