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जैन सस्कृत महाकाव्य
प्राग के समान व्याप्त है । यह भी ज्ञातव्य है कि काव्य का अन्त उसकी पराजय माथवा सम से नहीं अपितु उन्नयन से हुआ है। वह हर प्रकार से नायक के पद का अधिकारी है। यदि उसे काव्य का अंगभूत मायक माना जाए, तो उसका विस्तृत वर्गल रसदोष होगा, जिसकी आलोचना साहित्यशास्त्रियों ने हयग्रीववधकाव्य के प्रतिनायक के प्रसंग में की है" । सम्भवतः यह कवि को अभीष्ट नहीं है। .
भरत तथा बाहुबलि सगे भाई हैं -आदि तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र । ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते भरत को, अयोध्यापति के रूप में, पिता का उत्तराधिकारी नियुक्त किया जाता है। बाहुबलि को तक्षशिला का राज्य मिला।
.. भरत बीरता तथा प्रताप की साकार प्रतिमा है । षड्-खाण्ड में उसका अप्रतिहत प्रमुख है । वन से आहत पर्वतों को सागर की अलराशि में शरण मिल सकती है परन्तु उसके प्रताप से मथित विपक्षी राजाओं का त्रिलोकी में कोई त्राता नहीं है । उसके अनुजों सहित पृथ्वीतल के समस्त राजा उसकी आज्ञा को शिरोधार्य कर अपने को कृतकृत्य मानते हैं।। फलतः राजलक्मियां उसे स्वतः प्राप्त हो गयी हैं जैसे सरिताएं स्वयं सागर में पहुंच जाती हैं"। देवता भी उसके तेज से कांपते हैं, तुच्छ मनुष्य का तो कहना ही क्या ? स्वयं देवराज इन्द्र उसे अपने आधे सिंहासन पर बैठा कर सम्मानित करता है । मयों अथवा अमल्यों में उसके पैरी.की कल्पना करमा आकाशकुसुम की भांति असम्भव है. अपने सकसे वह इस कार दुर्वर्ष बन गया है जैसे मद से हाथी, सिंह से बन, वायु से आग और कडवानल से सागर"। संसार में केवल बाहुबलि ही ऐसा व्यक्ति है, जो उसकी अधीनता नहीं मानता, जिसके फलस्वरूप उसका चक्र आयुधशाला में प्रविष्ट नहीं हुआ। . प्रतापी सम्राट् होने के नाते वह राज्यलोलुप है । वह समस्त जगत् पर उसी प्रकार अपना आधिपत्य स्थापित करने को लालायित है जैसे इन्द्र का स्वर्ग पर तथा ग्रहों पर सूर्य का प्रभुत्व है। अपनी लिप्सा की पूर्ति के लिये वह सदैव युद्ध ३१. अंगस्याप्रधानस्यातिविस्तरेण वर्णनम् । यथा हयग्रीववधे हयग्रीवस्य । काव्य
प्रकाश, पूना, १९६५, सप्तम उल्लास, पृ. ४४१ ३२. भ० बा०महाकाव्य, २.३७ । ३३. स्वयं तमायान्ति नरेन्द्रलक्ष्म्यो महीध्रकन्या इव वारिराशिम् । वही, २.३५ ३४. सुरा अपि चकम्पिरे मर्त्यकीटास्ततः केऽमी । वही, ११.६३ ३५. वही, २.६४ ३६. मदेन हस्तीध वनप्रदेशो मृगारिणेवाग्निरिवाशुमेन ।
ऊर्वानलेनेव पयोधिराभाच्चक्रेण राजाधिकदुःप्रर्धर्षः।।वही, २.४२ ३७. वही, २.७७