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स्थूलभद्रगुणमालाचरित्र : सूरचन्द्र
नमोनमस्य मासौ द्वौ वर्षर्तुरेष भाषितः । एवमस्य ऋतोः किचित्स्वरूपमुपर्वाणतम् ॥ १०.२२५
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पाठक की सहनशीलता पर कितना क्रूर व्यंग्य है ?
अप्रस्तुत योजना में दक्षता के कारण सूरचन्द्र ने बहुधा प्रकृति का आलंकारिक चित्रण किया है। प्रकृति के स्वाभाविक रूप के प्रति उसका ममत्व निश्छल है, किंतु उसकी कल्पनाशीलता उसे प्रकृति का संश्लिष्ट अंकन करने को विवश करती है । सूरचन्द्र के पास कल्पनाओं का अपार भण्डार है । वह प्रकृति के सामान्य से सामान्य तत्त्व को भी अनेक अप्रस्तुतों से सजा सकता है । फलतः, स्थूलभद्रगुणमाला में प्रकृति की सहज- अलंकृत रूप दिखाई देता है । निस्सन्देह कवि की उर्वर कल्पना से उसके वर्णन चमत्कृत हैं, परन्तु अप्रस्तुतों के बाहुल्य के कारण स्वयं प्रकृति गोण-सी बन गयी है। एक-दो उदाहरण पर्याप्त होंगे।
वसन्त में खिले टेसू के फूलों की लालिमा का कारण ढूंढने के प्रयत्न में सूरचन्द्र ने अप्रस्तुतों का जो जमघट लगाया है उनमें दब कर वर्णनीय विषय अदृश्यसा हो गया है । कवि की कल्पना है कि नवोढा वनभूमि ने विवाह का लाल जोड़ा पहन लिया है अथवा पति वसन्त के पास जाकर वह लज्जा से लाल हो गयी है, अथवा यह शरत् रूपी हाथी के रक्त से रंजित वन सिंह की नखराजि है या अटवीfret अपनी अरुण मंगुलियों से युवकों को आमन्त्रित कर रही है । कल्पनाएं सभी रोचक हैं किंतु अन्तिम दो कुछ दूरारूढ़ प्रतीत होती हैं ।
स्पष्टावी वधूटीयं रक्ताम्बरधरा किमु । किं वासावेव सुरभि पति प्राप्यारुणानना ॥ कि वा वनमृगेन्द्रस्य दृश्यते नखरावली । शीतर्तुमत्तमातंगभिन्नकुम्भासुजारुणा ॥
fe वाटवीपणस्त्री स्वकीयांगुलिकाभिः । तरुणानाह्वयन्तीव क्रीडितुं निजकांतिके ॥ १३.२५-२७
शर का हृदयग्राही वर्णन भी कवि-कल्पना की आभा से दीप्त है। रोचक तथा सटीक अप्रस्तुतों के कारण शरत्काल के प्रत्येक उपकरण में सजीवता का समावेश हो गया है। पूनम का चांद स्वगंगा में खिला कमल प्रतीत होता है । उसको कलंक ऐसा लगता है मानों मकरन्द से पूर्ण कमल पर भौंरा बैठा हो अथवा रोहणी से रमण करते समय लगी हुई, उसकी काजल की बिंदिया हों। नील गगन में तारे ऐसे चमक रहे हैं जैसे इन्द्रनील मणियों के थाल में रखे हुए मोती हों अथवा काली धरती पर गिरे सण्डल हों या रजनीलता की कुसुमावली हो ।
यद्वा वियन्नदीमध्ये पुण्डरीकं चलाचलं । संदृश्यते मधुभूतं भगसंगमरंगितम् ॥ ११.२७