________________
स्थूलभद्रगुणमालाचरित्र : सूरचन्द्र
१६४ प्रायः होता है, उसके अतिशय भोग की परिणति योग में होती है। पिता के दु:खद बलिदान से उसके जीवन का पट-परिवर्तन होता है। 'विषयासक्ति के कारण वह पितृवध के षड्यन्त्र को भी नहीं जान सका२१- यह विचार उसे बार-बार सालता है। इससे वह इतना लज्जित तथा विचलित होता है कि मन्त्रिपद आदि के प्रबल प्रलोभनों को ठुकरा कर वह साधुत्व स्वीकार कर लेता है और आदर्श श्रमण का जीवन व्यतीत करता है । समितियों तथा गुप्तियों का परिपालन करने से वह दूसरों को भी भवसागर से पार करने में समर्थ हो गया है ।
यहां से स्थूलभद्र के जीवन का द्वितीय उदात्त अध्याय आरम्भ होता है । वह धर्म में दृढ़ता से प्रवृत्त हुआ" । उसका मन शान्तरस में रम गया । बह शान्ति तथा संयम की मूर्ति बन गया । विषयों के बीच वह मेरु के समान अडिग तथा अडोल है। उसने जगद्विजेता काम को पराजित कर दिया और सांसारिक वासनाओं को जीत लिया। इस साधना के फलस्वरूप मुनि स्थूलभद्र वीतरागता की उत्तुंग भावभूमि में पहुंच गया। जिस कोश्या के साथ उसने यौवन के अलम्य भोग भोगे थे, वह उसी मणिका की चन्द्रशाला में अनासक्त भाव से चातुर्मास व्यतीत करता है। वहां वह न केवल उसके 'मनोरति' के उन्मुक्त निमन्त्रण को निलिप्त भाव से अस्वीकार करता है बल्कि धन-यौवन की निस्सारता के प्रेरक उपदेश से अपनी 'प्राणप्रिया' को संयम तथा शील की ओर उन्मुख करता है जिससे उसे अद्भुत गौरव एवं श्रद्धा की प्राप्ति होती है । वस्तुतः स्थूलभद्र के समान महान् वीतराग साधु पृथ्वीतल पर दुर्लभ है। कोश्या
स्थूलभद्र की प्रणयिनी कोश्या काव्य की नायिका है । वह वेश्या अवश्य है, किन्तु वसन्तसेना की भांति, एक व्यक्ति पर प्रणय केन्द्रित होने के पश्चात् उसका व्यक्तित्व कुन्दन की भांति चमक उठा है । वह अनुपम सुन्दरी है। चतुरानन
२१. वही, ७.१५६,१६० २२. वही, ८.१४६-१५०,१४.११६ २३. वही, १७.३४ २४. मनः शान्तरसे न्यधात्, १७.३३; आयान्तं मेरवद्धीरं महावतधुरन्धरम् ।
१४.११२ २५. संसारवासनाः सर्वा योजयत्स्मरमर्दनः। १७.१५३ तथा १७.१५६ २६. ममायमुपकारी योगान् भुक्त्वा पुरा मया।
धर्मकर्मणि मां प्रेम्णा प्रतिबोधयतेऽधुना १७.६६ २७. स्थू लभद्रसमः साधुविरलो दुर्लभो भुवि । १७.१५३