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जैन संस्कृत महाकाव्य
कि कवि ने इसकी पूर्ति जयपुर-नरेश जयसिंह के शासनकाल में, सम्वत् १६८० (सन् १६२३), पौष तृतीया को, जयपुर के निकटवर्ती सांगानेर (संग्रामनगर) में की थी।
पूर्णाष्टरसचन्द्राब्वे पौषतृतीयिकादिने। पुण्यार्केऽपूर्वयं प्रन्थो मया देवगुरुस्मृतेः ॥ १७.२६५ संग्रामनगरे तस्मिन् जनप्रासावसुन्दरे । काशीवकाशते यत्र गंगेव निर्मला नदी ॥१७.२६६ राज्ये श्रीजयसिंहस्य मानसिंहस्य सन्ततेः ।
महाराजाधिराजाख्याश्रितस्य साहिलासनात् ॥१७.२९८ कथानक
स्थूलभद्रगुणमाला की जोधपुर-प्रति में दूसरे से पन्द्रहवें तक, चौदह सर्ग (अधिकार) अविकल विद्यमान हैं तथा सोलहवें सर्ग का कुछ भाग उपलब्ध है। 'घाणेराव भण्डार की प्रति काव्य का सम्पूर्ण पाठ प्रस्तुत करती है ।
प्रथम अधिकार फलद्धि का पार्श्वनाथ, गणधर गौतम' तथा वाग्देवी की स्तुतिरूप मंगलाचरण, सज्जन प्रशंसा तथा स्थूलभद्र के गौरव के वर्णन से आरम्भ होता है । पाटलिपुत्र के उदार तथा पराक्रमी नरेश नन्दराज के मंत्री शकटाल का ज्येष्ठ पुत्र यही स्थूलभद्र काव्य का नायक है । नन्दराज के पराक्रम के संदर्भ में, इस सर्ग में, पृष्ठभूमि के रूप में, पाटलिपुत्र तथा नन्दराज के शस्त्रास्त्रों का विस्तृत वर्णन किया गया है, जिससे काव्य की शैली तथा वर्णन-पद्धति का पूर्वाभास मिलता है। एक दिन युवा स्थूलभद्र को राजपाटी पर देखकर पाटलिपुत्र की रूपवती वेश्या कोश्या उसके अनुपम सौन्दर्य पर मोहित हो जाती है । कामावेग के के कारण उसे पल भर भी कल नहीं। उसकी सखी पधिनी स्थूलभद्र से, प्रेम के ६. नमो विघ्नच्छिवेऽजाय शम्भवे परमात्मने ।
श्रीफलवचिकापारवनाथाय स्वामिने सते ॥१.१ ७. गौतमं तं नमस्कुलॊ यत्कीतिस्फूर्तिनर्तकी।
नृत्यन्ती मेरवंशाने दृश्यते त्रिदर्शरपि ॥१.४ ८. यस्याः शासनतो ह्रस्वो दीर्घश्चापि समाप्नुतः।
गुणवृद्धिसमे सास्तु श्रितोन्नतिकरीह वाक् ॥१.६ ६. शुद्धिः स्यात् मानसी स्नातां यद्गुणश्रेणिवेणिषु ।
व्यत्ययोऽपि गुणायैवं सन्तस्ते सन्तु मे सते ।।१.१७ १०. भूयिष्ठाः साधवोऽभूवन् विशुद्धब्रह्मसाधकाः।
सिद्धब्रह्मा परं चैषां स्थूलभद्रोऽभवन् मुनिः १.२२