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स्थूलभद्रगुणमालाचरित्र : सूरचन्द्र
सूरचन्द्र का स्थूलभद्रगुणमालाचरित्र संस्कृत-महाकाव्य के अन्तिम युग की प्रतिनिधि रचना है । इसमें वर्णनों की आधारभित्ति पर काव्य की अट्टालिका का 'निर्माण करने का भगीरथ परिश्रम किया गया है। स्थूलभद्रगुणमाला के सतरह
सों (अधिकारों) में नन्दराज के महामन्त्री शकटाल के पुत्र स्थूलभद्र तथा पाटलि"पुत्र की मोहिनी वेश्या कोश्या के अनन्य प्रणय की कोमल पृष्ठभूमि में मन्त्रिपुत्र की प्रव्रज्या तथा कोश्या के प्रतिबोध का सविस्तार निरूपण करना कवि का अभीष्ट है । 'परन्तु जिस प्रकार कथानक को प्रस्तुत किया गया है, उसमें वह अन्तहीन वर्णनों की परतों में दब कर अदृश्य हो गया है।
स्थूलभद्रगुणमाला की एक हस्तप्रति (संख्या २७) केसरियानाथ जी का मन्दिर, जोधपुर में स्थित ज्ञानभण्डार में विद्यमान है। दुर्भाग्यवश यह प्रति अधूरी है। इसमें न केवल प्रथम दो पत्र अप्राप्त हैं, अन्तिम से पूर्ववर्ती तीन पत्र भी नष्ट हो चुके हैं। लिपिकार ने पत्रसंस्था देने में प्रमाद किया है। छठे के पश्चाद्वर्ती पत्र की संख्या आठ दी ममी है, बपि पचों के अनुक्रम में कोई विच्छेद नहीं है । प्रस्तुत प्रति में १०"xg"नाकार के सत्ताईस पात्र हैं। प्रत्येक पत्र पर बाईस पंक्तियां और प्रत्येक पंक्ति में लगभग ५५ अक्षर हैं। प्रति का आरम्भ सत्ताईसवें पच से होता है। 'पत्र के आकार को देखते हुए यह अनुमान सहज किया जा सकता है कि अनुपलब्ध
दो पत्रों में १२६ पच थे। यह हस्तप्रति तथा इसकी फोटो प्रति हमें क्रमश महोपाध्याय विनयसागर तथा श्रीयुत अमरचन्द नाहटा के सौजन्य से प्राप्त हुई थी।
स्थूलभद्रगुणमाला की पूर्ण प्रति धामेराव भण्डार में उपलब्ध हैं । इस प्रति का महत्त्व इसकी पूर्णता में निहित है अन्यथा यह, जैसा इसकी प्रतिलिपि से प्रतीत होता है, अशुद्धियों से भरपूर है और इसका पाठ बहुधा प्रामक है। इसकी तुलना में, जोधपुर की प्रति अधिक प्रामाणिक है, हालांकि वह भी त्रुटियों से पूर्णतः मुक्त नहीं है । घाणेराव भण्डार की प्रति हमें प्राप्त नहीं हो सकी। श्री अगरबन्द नाहटा ने इसकी प्रतिलिपि कई वर्षों के अथक परिश्रम से प्राप्त की है। प्रस्तुत विवेचन इन्हीं प्रतियों/प्रतिलिपियों पर आधारित है। स्थूलभद्रगुणमाला का महाकाव्यत्व
स्थूलभद्गुणमाला का लक्ष्य विषय-भोग में मग्न स्थूलभद्र तथा उसकी