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जैनकुमारसम्भव : जयशेखरसूरि
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अलंकार है । उपमा वर्ण्य भाव को हस्तामलकवत् प्रत्यक्ष कर देती है । जयशेखर ने भावपूर्ण तथा अनुभूत उपमानों के द्वारा भावों की समर्थ अभिव्यक्ति की है । सुमंगला तथा सुनन्दा की दृष्टि की चंचलता पति के सामने इस प्रकार विलीन हो गयी जैसे अध्यापक के समक्ष छात्र की चपलता ( ४.७८ ) । सखियों ने सहसा उठकर सुमंगला को ऐसे घेर लिया जैसे भ्रमरों की पंक्ति कमलिनी को घेर लेती हैं। ( १०.३१) । जयशेखर के दार्शनिक तथा अमूर्त उपमान भी उपमित भाव को सहजता से प्रस्फुटित करते हैं । ऋषभ के विवाह प्रसंग की एक उपमा उद्धृत की जाती है जिससे कवि के उपमा - कौशल का सम्यक् परिचय मिलता है । एक स्त्री, ऋषभ के गले में वस्त्र डालकर उन्हे विवाहमण्डप में ऐसे ले गयी जैसे कर्मरूप पापप्रकृति आत्मा को भवसागर में खींच ले जाती है ।
प्रगृह्य कौसुम्भसिचा गलेऽबला बलात्कृषन्त्येनमनंष्ट मंडपम् । अवाप्तवारा प्रकृतिर्यथेच्छ्या भवार्णवं चेतनमप्यधीश्वरम् ॥४७४
उपमा के अतिरिक्त काव्य में दृष्टान्त तथा अर्थान्तरन्यास की भरमार है । इन दोनों अलंकारों का आधार कवि का व्यावहारिक ज्ञान, लोकोन्मुखता तथा तीव्र निरीक्षण शक्ति है । जैनकुमारसम्भव को 'सूक्तिसागर' बनाने का श्रेय दृष्टान्त तथा अर्थान्तरन्यास को ही है । निद्रा-प्रशंसा में दृष्टान्त की मार्मिकता उल्लेखनीय है । वृष्टनष्ट विभवेन वर्ण्यते भाग्यवानिति सर्वव दुर्विधः ।
जन्मतो विगतलोचनं जनं प्राप्तलुप्तनयन: पनायति ।। १०.५१
जैनकुमारसम्भव में अर्थान्तरन्यास का कदाचित् सबसे अधिक प्रयोग हुआ है । काव्य में अनेक रोचक तथा भावपूर्ण अर्थान्तरन्यास मिलते हैं । रात्रि के प्रस्तुत बर्णन में कवि की कल्पना ने अर्थान्तरन्यास का बाना धारण किया है। यहां पूर्वार्द्ध के विशेष कथन की पुष्टि उत्तरार्द्ध की सामान्य उक्ति से की गयी है ।
तितांसति श्वेत्यमिन्दुरस्य जाया निशा दित्सति कालिमानम् । अहो कलत्रं हृदयानुयायि कलानिधीनामपि भाग्यलभ्यम् ।। ६.६
ऋषभ के सौन्दर्य-वर्णन के अन्तर्गत इस पद्य में स्त्रियों की दृष्टि का उनके ( ऋषभ के) विविध अंगों में क्रम से विहार करने का वर्णन होने के कारण 'पर्याय' अलंकार है ।
स्रान्त्वाखिलें गेऽस्य दृशो वशानां प्रभापयोऽक्षिप्रपयोनिपीय । छायां चिरं भ्रूलतयोरुपास्य भालस्थले संदधुरध्वगत्वम् ।। १.५ε
रूपक, उत्प्रेक्षा, काव्यलिङ्ग, विरोध, व्यतिरेक, अतिशयोक्ति, असंगति, विभावना, अनुमान, तद्गुण, उदात्त, उल्लेख, संदेह, प्रहेलिका, समासोक्ति, स्वभावोक्ति कवि के अन्य प्रिय अलंकार हैं । इनमें कुछ पूर्ववर्ती प्रसंगों में उदाहृत