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यदुसुन्दरमहाकाव्य : पद्मसुन्दर
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यदुसुन्दर में चौबीस छन्द प्रयुक्त हुए हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- वंशस्थ, वसन्ततिलका, मालिनी, स्रग्धरा, शार्दूलविक्रीडित, शिखरिणी, द्रुतविलम्बित, शालिनी, प्रहर्षिणी, हरिणी, मत्तमयूरी, पुष्पिताग्रा, पृथ्वी, मन्दाक्रांता, रुचिरा, जलधरमाला, स्वागता, तोटक, मंजुभाषिणी, प्रमिताक्षरा, इन्द्रवज्रा, रथोद्धता, इन्द्रवंशा और अनुष्टुप् । छह पद्यों के छन्द ज्ञात नहीं हो सके (४.८१, ६.३२, ३४, ३८-४०) । प्रथम, द्वितीय तथा चतुर्थ सर्गों का प्रधान छन्द 'वंशस्थ ' है । पांचवें, छठे तथा नवें सर्गों में छन्दों का बाहुल्य है । इन सर्गों में बार-बार छंद बदलता है। पंचम सर्ग में नी तथा नवें सर्ग में बारह छन्द प्रयुक्त हुए हैं। दसवें सर्ग के प्रथम चालीस पद्य स्वागता छंद में निबद्ध हैं। शेष इकतीस पद्यों में अनुष्टुप, शार्दूलविक्रीडित और नवरा रचना के आधार बने हैं ।
यदुसुन्दर का समूचा महत्त्व इस तथ्य में निहित है कि इसमें नवीन पात्रों के माध्यम से नैषधचरित का संक्षिप्त रूपान्तर प्रस्तुत किया गया है । मौलिकता के अभाव के कारण यदुसुन्दर ख्याति प्राप्त नहीं कर सका । सम्भवतः यही कारण है कि इसकी केवल एक हस्तलिखित प्रति उपलब्ध है ।